माँ सरस्वती की कथा

हंस एवं मोर की सवारी करने वाली सरस्वती देवी हिन्दुओं की मुख्य देवी माना जाता हैं, इन्हें शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि नामों से भी भक्त पुकारते हैं. विद्या की अधिष्ठात्री देवी की उपासना करने से ज्ञान तथा सद्बुद्धि की प्राप्ति होती हैं. कहा जाता हैं कि कालिदास अपने जमाने का सबसे बड़ा मुर्ख था जिसने माँ सरस्वती की आराधना की जिससे वों महान कवि बन गया. बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) को इनका जन्म दिवस हैं.

माँ सरस्वती की कथा

महासरस्वती या चामुंडा माता की कथा

एक समय शुम्भ निशुम्भ के दो दैत्य बहुत बलशाली थे. उनमे युद्ध में मनुष्य तो क्या देवता भी हार गये. जब देवताओं ने देखा कि अब युद्ध में जीत नही सकते.

तब वे स्वर्ग छोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे. उस समय भगवान विष्णु के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी.

महासरस्वती अत्यंत रूपवान थी, उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गये और अपना सुग्रीव नाम का  दूत उस देवी के पास अपनी इच्छा प्रकट करने के लिए भेजा.

उस दूत को देवी ने वापिस कर दिया. उसके बाद उन दोनों ने सोच समझकर अपने सेनापति धुभ्राक्ष को सेना सहित भेजा, जो देवी  द्वारा सेना सहित मारा गया.

फिर चंड मुंड लड़ने आए और वे भी मार डाले गये. इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर पैदा होता था. वह बहुत बलवान था उसे भी देवी ने मार डाला.

अंत में चामुंडा से शुम्भ निशुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आए और देवी के हाथों मारे  गये. सभी देवता दैत्यों की मृत्यु के बाद बहुत खुश हुए और अपना अपना कार्य करने लगे.

देवी सरस्वती को विद्या साहित्य एवं संगीत की देवी कहा जाता हैं, इन क्षेत्रों के लोगों एवं विद्यार्थियों द्वारा माँ सरस्वती की नित्य पूजा अर्चना की जाती हैं.

माँ को खुश करने के लिए आरती, भजन, चालीसा, शारदे वंदना, शंखनाद आदि भी किए जाते हैं. हाथ में किताब एवं वाद्य यंत्र लिए पास में मोर की आकृति हरेक सरस्वती फोटो में देखने को मिलती हैं.

शिक्षा को मानव का तीसरा चक्षु माना जाता हैं. शिक्षा एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण बसंत पंचमी के दिन विद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों में सरस्वती वंदना के साथ विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत होती हैं.

हिन्दू देवी सरस्वती का निवास स्थान सत्यलोक में माना जाता हैं. एक मुख चार हाथ एक में माला एक में किताब तथा दोनों हाथों में वीणा धारण करने वाली देवी का वाहन हंस को माना जाता हैं.

सरस्वती का पिता ब्रह्मा जी को माना जाता हैं. सरस्वती मंत्र इस प्रकार हैं. जिसका पूजा के समय उच्चारण करना चाहिए. “ॐ एं सरस्वत्यै नमः”

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या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥॥

माँ सरस्वती का पूजन किस दिन करें?
हिंदू कैलेंडर के माघ महीने के वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पौराणिक ग्रंथों में ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती जी ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुई थी। ‌]

मां सरस्वती जी की पूजा बसंत पंचमी के पांचवे दिन की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मां सरस्वती जी की पूजा फरवरी महीने में की जाती है वसंत ऋतु के समय माता सरस्वती जी की पूजा करते समय लोग पीले रंग का वस्त्र धारण करते हैं।

माँ सरस्वती के नाम (उनका अर्थ)
माता सरस्वती के कई नाम हैं लेकिन इनमें प्रमुख हैं – 

शारदा – शिक्षा की देवी 
हंसवाहिनी – हंस के ऊपर विराजने वाली देवी। 
बुद्धिमाता – ज्ञान और बुद्धि की देवी। 
वरदायिनी – वर देने वाली देवी। 
भुवनेशवरी – पृथ्वी की देवी। 
सरस्वती माता का व्रत किस दिन होता है
वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती का पूजन निर्जल व्रत रखकर की जाती हैं और अन्य दिनों में मां सरस्वती व विष्णु जी की पूजा व्रत के साथ गुरुवार के दिन करना सबसे योग्य माना जाता है। 

माँ सरस्वती के पति कौन है
सरस्वती पुराण के अनुसार मां सरस्वती जी का विवाह अपने पिता ब्रह्मा जी के साथ हुआ था। मां सरस्वती जी के पति ब्रह्मा जी हैं। 

बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?
वसंत पंचमी का त्यौहार हर साल मनाया जाता है लेकिन वसंत पंचमी मनाए जाने के पीछे एक बहुत ही प्रचलित लोक गाथा है जिसके अनुसार जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा देव सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तब उन्होंने जीव जंतु, पेड़ पौधे, प्राणी पक्षी सभी की रचना की थी। 

लेकिन सृष्टि का निर्माण करते समय ब्रह्मा जी से कोई कमी रह गई थी जिसके कारण सृष्टि में कहीं भी आवाज का नामोनिशान नहीं था। इसीलिए ब्रह्मा जी ने जब अपने कमंडल से जल छिड़का तो उस जल से एक बहुत ही सुंदर स्त्री प्रकट हुई।

4 हाथों वाली सुंदर स्त्री के हाथ में वीणा दूसरे हाथ में पुस्तक तीसरे हाथ में माला और छोटे हाथ से वर मुद्रा बनी हुई थी।  इस सुंदर स्त्री को ब्रह्मा जी ने माता सरस्वती का नाम दिया और उनसे वीणा बजाने के लिए कहा। 

जब माता सरस्वती जी ने वीणा बजाई तो सृष्टि के हर कोने कोने में स्वर गूंजने लगा। माता सरस्वती वसंत पंचमी के दिन प्रकट हुई थी इसीलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा हर साल की जाती हैं। 

मां सरस्वती का पूजन कैसे करें?
विद्या की देवी मां सरस्वती जी की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती हैं। वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा करते समय लोग पीले रंग का वस्त्र पहनते हैं और पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पूजा करना शुरू करते हैं। ‌

पूजा शुरू करने के बाद सबसे पहले पूजा स्थान पर पीले रंग का वस्त्र बिछाया जाता है और उस पर माता सरस्वती को विराजा जाता है। मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने के बाद पीले फूल, हल्दी चावल, केसर, रोली, पीली मिठाई मौली आदि चढ़ाई जाती है। 

पूजा के दौरान दाएं हाथ से पीले पुष्प, सफेद चंदन माता को अर्पित करें। भोग के रूप में माता को खीर चढ़ाई जाती है। उसके बाद माता सरस्वती का स्मरण करते हुए मां सरस्वती जी के मंत्र ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का उच्चारण कीजिए।

उसके बाद आप मां सरस्वती जी को धूप दिखाकर आरती कीजिए। इस तरह से पूरे विधि विधान के साथ मां सरस्वती जी की पूजा आप स्वयं कर सकते हैं।

मां सरस्वती को प्रसन्न कैसे करें?
विद्या, बुद्धि, सुख समृद्धि की कामना करते हुए अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते हैं तो बसंत पंचमी के दिन आपको मां सरस्वती जी की पूजा अपने घर पर करनी चाहिए पूरे विधि विधान से मां सरस्वती जी की पूजा करके आप माता को प्रसन्न कर सकते हैं। 

मां सरस्वती जी की कृपा प्राप्त करनी हो या फिर विद्या के क्षेत्र में आ रही परेशानियों को दूर करना हो सभी के लिए मां सरस्वती को प्रसन्न करना एक अच्छा और फलदायक कार्य साबित हो सकता है।

नौकरी के क्षेत्र में अगर आप निरंतर प्रयास कर रहे हैं लेकिन काफी मेहनत के बाद भी कोई फल प्राप्त नहीं हो रहा है तो माता सरस्वती की पूजा पूरे मन से करके आप उन्हें प्रश्न कर सकते हैं।




सीता नवमी

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