मंगलवार का दिन पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना के लिए समर्पित है. कई बार हनुमान जी ने अपने प्रभु राम की मदद के लिए असंभव को भी संभव कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने ने राम नाम के महत्व के लिए प्रभु राम के क्रोध का सामना भी किया. हनुमान जी के आराध्य प्रभु राम हैं और राम जी को हनुमान जी सभी भक्तों में सबसे अधिक प्रिय हैं. हनुमान जी और प्रभु राम से जुड़ी कई कहानियां हैं. आज हम आपको एक ऐसी कथा के बारे में बता रहे हैं, जिसमें प्रभु राम ने हनुमान जी के घमंड को तोड़ा था.

लंका युद्ध के पहले की बात है. समुद्र को पारकर लंका जाने के लिए सेतु बनाया जाना था. उससे पूर्व प्रभु राम चाहते थे कि सेतु पर एक शिवलिंग की स्थापना की जाए. प्रभु राम ने हनुमान जी से अपने मन की बात बताई और कहा कि काशी जाकर शिवलिंग लाएं और मुहूर्त से पूर्व आ जाएं.

पवनपुत्र के लिए काशी जाना कोई बड़ी बात नहीं थी. वे तो अतुलित बलशाली और वेगवान थे. वे पलभर में ही काशी पहुंच गए. अपने वेग पर उनको थोड़ा सा अभिमान हो गया. प्रभु राम तो अंतर्यामी हैं. उन्हें यह बात पता चल गई. उन्होंने सुग्रीव से कहा कि मुहूर्त बीत जाएगी, ऐसे में वे रेत की ही शिवलिंग सेतु पर स्थापित कर देते हैं. प्रभु राम ने वहां पर रेत का शिवलिंग स्थापित कर दिया.

इसी बीच हनुमान जी काशी से शिवलिंग लेकर प्रभु राम के पास पहुंच गए. उन्होंने देखा कि प्रभु राम ने तो रेत का शिवलिंग स्थापित कर दिया है. हनुमान जी ने प्रभु राम से कहा कि आपने मुझे काशी भेजकर यह शिवलिंग लाने को कहा था. यह लेकर आ गया, लेकिन आपने रेत का शिवलिंग
स्थापित कर दिया.

तब प्रभु राम ने कहा कि उनसे भूल हो गई है. ऐसा करो कि इस रेत वाले शिवलिंग को यहां से हटा दो. फिर वे काशी से लाए शिवलिंग को यहां स्थापित कर देंगे. हनुमान जी ने प्रभु आज्ञा पाकर अपनी पूंछ से रेत के शिवलिंग को पकड़ लिया और उसे उखाड़ने की कोशिश करने लगे. लेकिन वह शिवलिंग वहां से एक इंच भी नहीं हिला.

हनुमान जी को पहले आश्चर्य हुआ, लेकिन थोड़े ही देर में उनको अपनी गलती का एहसास हो गया. उनका घमंड टूट गया. फिर उन्होंने अपने प्रभु श्री राम से क्षमा मांगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने जीवन को साकार करें उपनिषद पढ़कर 60 से भी अधिक उपनिषद PDF