प्रह्लाद ने दैत्य कुल में जन्म लिया था जिसके माता-पिता दैत्य जाति से थे। दैत्य कुल में जन्म लेने के पश्चात भी वह भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था जिस कारण आज तक उसका नाम भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्तों के रूप में लिया जाता है।

आज हम भक्त प्रह्लाद के जन्म से जुड़ी कथा, उसको अपने पिता से मिली यातनाएं, भगवान विष्णु के द्वारा हर बार उसकी रक्षा करना व अपने पिता की मृत्यु के बाद उसके जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।

भक्त प्रह्लाद का जीवन परिचय

भक्त प्रह्लाद का जन्म

जब प्रह्लाद अपनी माँ कयाधु के पेट में था तब उसके चाचा हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु के वराहावतार ने वध कर दिया था। इससे कुंठित होकर उसके पिता हिरण्यकश्यप भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने चले गए थे। इसके बाद दैत्य नगरी में हिरण्यकश्यप को ना पाकर देवताओं ने वहां पर आक्रमण कर दिया था।

उन्होंने दैत्य नगरी पर अधिकार कर लिया तथा कयाधु (Prahlad Ki Mata Ka Naam) को बंदी बना लिया। इंद्र देव कयाधु को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाने लगे कि नारद मुनि ने उन्हें रोक दिया। नारद मुनि ने इंद्र से कहा कि तुम एक गर्भवती स्त्री पर अत्याचार नही कर सकते और वह भी तब जब उसके गर्भ में भगवान विष्णु का भक्त पल रहा हो।

इसके पश्चात नारद मुनि कयाधु को इंद्र के चंगुल से छुड़ाकर अपने आश्रम में ले आये तथा हिरण्यकश्यप की तपस्या पूर्ण होने तक अपने आश्रम में रखा। इस दौरान नारद मुनि कयाधु को हरी भजन सुनाते व भगवान विष्णु की कथाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते।

नारद मुनि के इन वचनों का सकारात्मक प्रभाव कयाधु के गर्भ में पल रहे अजन्मे प्रह्लाद पर भी पड़ रहा था। यही कारण था कि जब उसका जन्म हुआ तब वह विष्णु भक्त बना। उससे पहले उसके चार बड़े भाई भी थे जिनका जन्म दैत्य नगरी में ही हुआ था किंतु उनमे से केवल प्रह्लाद ही विष्णु भक्ति में लीन रहता था।

इसी बीच हिरण्यकश्यप की तपस्या समाप्त हो गयी तथा भगवान ब्रह्मा से उसने तीनों लोकों में सर्वशक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त कर लिया। इसके बाद वह पुनः अपनी दैत्य नगरी वापस आ गया और वहां देवताओं का अधिकार हुए देखा। इसके बाद उसने अपने मिले वरदान से ना केवल दैत्य नगरी को वापस पाया अपितु तीनों लोकों पर अधिकार स्थापित कर लिया और इंद्र देव को स्वर्ग के आसन से अपदस्थ कर दिया।

हिरण्यकश्यप की तपस्या समाप्त हो जाने और पुनः अपनी नगरी लौट आने की सूचना मिलने के पश्चात कयाधु और भक्त प्रह्लाद भी नारद मुनि से आशीर्वाद लेकर पुनः अपनी नगरी लौट गए।

भक्त प्रह्लाद पर हिरण्यकश्यप के अत्याचार

हिरण्यकश्यप भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान के फलस्वरूप अति-शक्तिशाली हो चुका था। इसी अहंकार में उसने विष्णु को भगवान मानने से मना कर दिया और स्वयं को भगवान की उपाधि दे दी। तीनों लोकों में जो कोई भी विष्णु की पूजा करता, वह उसे मरवा डालता किंतु जब उसने अपने स्वयं के पुत्र को ही विष्णु भक्ति में लीन देखा तो क्रोध की अग्नि में जलने लगा।

उसने अपने पांच वर्ष के छोटे से पुत्र प्रह्लाद को मारने की कई बार चेष्ठा की लेकिन हर प्रयास असफल सिद्ध हुआ। उसने प्रह्लाद को पागल हाथियों के सामने फिंकवा दिया ताकि वह उनके पैरों के नीचे कुचलके मारा जाये, सांपों से भरे कुएं में फिंकवा दिया, ऊपर पर्वत की चोटी से नीचे खाई में फेंक दिया, बेड़ियाँ बांधकर समुंद्र में फिंकवाया, अस्त्र-शस्त्र से मरवाने की कोशिश की, अपनी बहन होलिका के द्वारा अग्नि में जलवाने की कोशिश की लेकिन हर बार प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा करने स्वयं भगवान विष्णु आ जाते।

प्रह्लाद का तीनों लोकों का राजा बनना

एक दिन जब हिरण्यकश्यप प्रह्लाद के ऊपर अत्याचार कर रहा था तब भगवान विष्णु का क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। उस समय उन्होंने अत्यंत भयानक रूप लिया जो नृसिंह अवतार कहलाया। इस अवतार को धारण कर उन्होंने प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप का वध कर डाला।

इसके पश्चात भगवान नृसिंह के क्रोध को भक्त प्रह्लाद ने शांत करवाया। भगवान नृसिंह ने भी अपने नन्हे से भक्त प्रह्लाद को बहुत स्नेह दिया तथा उसे अपने पिता के राज सिंहासन (Bhakt Prahlad Ka Rajyabhishek) पर स्थान दिया। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे तीनों लोकों का राज प्रदान किया। इसके पश्चात भगवान नृसिंह पुनः भगवान विष्णु में समा गए।

हिरण्यकश्यप की मृत्यु के पश्चात प्रह्लाद का जीवन

अपने पिता की मृत्यु के पश्चात प्रह्लाद तीनों लोकों का राजा बन गया। दैत्य कुल से होते हुए भी उसने अहिंसा तथा धर्म का मार्ग अपनाया तथा सभी की रक्षा की। उसके राज्य में सभी प्रजा कुशल मंगल से रह रही थी। वह प्रतिदिन ब्राह्मणों को दान करता था तथा बिना अस्त्र उठाये सभी पर विजय पा लेता था।

प्रह्लाद के स्वभाव के कारण वह देवता तथा दानवों दोनों में प्रिय हो गया था। जब प्रह्लाद बड़ा हुआ तब उसका विवाह धृति नामक स्त्री से हुआ। इस प्रकार प्रह्लाद की पत्नी का नाम धृति (Prahlad Ki Patni Ka Naam) था जिससे उसके विरोचन नामक पुत्र (Prahlad Ka Putra) हुआ। विरोचन के पुत्र का नाम बलि था जिसका मानभंग भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर किया था।

अपने दानवीर व्यवहार के कारण एक दिन इंद्र ने प्रह्लाद के साथ छल किया था। उसने प्रातःकाल के समय ब्राह्मण वेश में प्रह्लाद से उसका शील/राज्य मांग लिया था। इस कारण प्रह्लाद के हाथों से संपूर्ण राज्य चला गया था। इससे क्रुद्ध होकर दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था।

बाद में प्रह्लाद के पास पुनः अपना राज्य आ गया था तथा उसने अपने पुत्र विरोचन को राज्य का भार सौंप दिया तथा स्वयं मोक्ष प्राप्त करने चले गए। इस प्रकार प्रह्लाद ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान विष्णु की भक्ति, सदाचार, धर्म की स्थापना करने में बिताया। प्रह्लाद के इसी व्यवहार के कारण ही वह दैत्य कुल में जन्म लेने के पश्चात भी भगवान विष्णु का सबसे प्रिय भक्त बन गया था।

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