रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का पावन त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहन को आजीवन रक्षा करने का वचन देते हैं. इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा. रक्षाबंधन का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी रक्षाबंधन की ये पौराणिक कथा सबसे अधिक प्रचलित है. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी बता रहे हैं महाभात के समय भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी रक्षाबंधन की इस कथा के बारे में.
श्रीकृष्ण-द्रौपदी की कथा
इस कथा के अनुसार, जब सुदर्शन चक्र से भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनकी उंगली कट गई थी, जिससे रक्त बहने लगा था. यह देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दी. उसी क्षण श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन मान लिया और आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन दिया. श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा, जिस समय भी वह स्वयं को संकट में पाएं, उन्हें याद कर सकती हैं.जब धृतराष्ट्र के भरी राजसभा में द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था और द्रौपदी की साड़ी उतारने का प्रयास किया जा रहा था, तब भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता मूकदर्शक बन गए थे. पांडव भी द्रौपदी की लाज नहीं बचा पाए. तब द्रौपदी ने अपनी आंखें बंद की और भाई श्रीकृष्ण को याद किया.बहन द्रौपदी का आह्वान सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से उसकी लाज बचाई. श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से द्रौपदी की साड़ी को इतना बड़ा कर दिया कि दु:शासन साड़ी खींचते-खींचते थक गया और बेहोश हो गया. राजदरबार में साड़ी का ढ़ेर लग गया, लेकिन द्रौपदी की साड़ी कृष्ण की लीला से समाप्त नहीं हुई. इस तरह से श्रीकृष्ण ने अपने दिए वचन से बहन द्रौपदी की लाज बचाई और रक्षा का दायित्व निभाया.