इसे शहर का सबसे पुरातन मंदिर माना जाता है।
हरसिद्धि माता मंदिर, भारत के मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर शहर में स्थित है। इसे शहर का सबसे पुरातन मंदिर माना जाता है। हरसिद्धि माता मंदिर के दाई और एक पुराना सा खंडहर भी बना है जिसे रुक्मणी देवी का मंदिर कहा जाता है जो पुरातत्व विभाग के देख-रेख में संचालित होता है। हरसिद्धि माता मंदिर में मुंडन संस्कार से लेकर शादी समारोह का आयोजन भी होता है। मंदिर के पुजारी के अनुसार वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि की दशमी और अश्विन मास की दशमी को मां का विशेष श्रृंगार किया जाता है। भक्तगण इस दिन मां के दर्शन सिंहवाहिनी के रूप में करते हैं।
Harsiddhi Mata Temple:हरसिद्धि माता मंदिर का इतिहास
हरसिद्धि माता मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने 21 मार्च 1766 को कराया था। तब यहाँ उनके पुत्र श्रीमंत मालेरावजी का शासन था। मंदिर में स्थापित देवी की दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में है। मंदिर परिसर में बाद में निर्मित शंकरजी व हनुमान जी के मंदिर भी हैं। मंदिर के सामने कभी एक पक्की बाव़ड़ी हुआ करती थी। माँ की मूर्ति इसी बाव़ड़ी से मिली थी।
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मंदिर का महत्व
लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते। देवी हरसिद्धि के नेत्र अलग से लगाए हैं। प्रतिमा के जो नेत्र हैं वह थोड़े छोटे हैं। कई वर्षों से उन्हें मीनाकार (मछली के आकार की) नेत्र लगाए जा रहे हैं। यह नेत्र नाथद्वारा से आते हैं। चांदी पर मीना लगाकर इन नेत्रों को तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि इन नेत्रों को लगाने के लिए किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। नेत्रों को लगाने के लिए मधुमक्खी के छत्ते से निर्मित मेंढ लगाया जाता है।
मंदिर की वास्तुकला
हरसिद्धि माता मंदिर मराठा शैली में बना है। मंदिर में देवी हरसिद्धि, देवी महालक्ष्मी और देवी सिद्धिदात्री विराजमान है। देवियों की प्रतिमाएं भी काफी विशेष है। दिर का निर्माण वास्तु के अनुरूप किया गया है।सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें मूर्ति पर पड़ती हैं। परिसर में अष्ट भैरव स्थापित है। मंदिर में हरसिद्धि देवी का महिषासुर मर्दिनी के रूप में है। चारभुजाधारी देवी के दाए हाथों में से एक में तलवार और दूसरे में त्रिशुल है जबकि बाए हाथों में से एक में घंटी और दूसरे में नरमुंड है। हरसिद्धि देवी की संगमरमर की यह प्रतिमा करीब चार फीट की है। इसी प्रकार मंदिर में विराजित महालक्ष्मी की प्रतिमा भी कुछ खास है।

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हरसिद्धि माता मंदिर में महालक्ष्मी की प्रतिमा काले पाषाण की है। यह प्रतिमा करीब ढ़ाई फीट की है। देवी के एक हाथ में अमृत तो दूसरे हाथ में पद्मपुष्प (कमल) है। जबकि तीसरी प्रतिमा सिद्धिदात्री की है, जो बिलकुल देवी हरसिद्धि के रुप से मिलती जुलती है। सिद्धिदात्रि की यह प्रतिमा संगमरमर की है। चारभुजाधारी इस प्रतिमा के दाए हाथों में से एक में खट्ग और त्रिशुल है, जबकि बाए हाथों में से एक में ढाल और दूसरे में मुंड है।
मंदिर का समय
मंदिर खुलने का समय
05:30 AM – 09:00 PM
श्रृंगार आरती
08:30 AM – 09:15 AM
सुबह की आरती
05:30 AM – 06:00 AM
सायंकाल आरती
07:30 PM – 08:15 PM
मंदिर का प्रसाद
हरसिद्धि माता मंदिर में मां को फल, लड्डू, ड्राई फ्रूट्स और पेड़े का भोग चढ़ाते है। कुछ श्रद्धालु माता को अपनी श्रद्धा के अनुसार पूड़ी-सब्जी का भोग भी लगाते हैं।