महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुछ उपदेश दिए, जिसके बाद अर्जुन ने युद्ध शुरू की और कौरवों को पराजित कर दिया. महाभारत के युद्ध को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है. महाभारत के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उसे जीवन का असली सूत्र माना गया है. गीता में इन्हीं उपदेशों के माध्यम से व्यक्ति जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति का भी हल ढूंढ़ लेता है. श्रीकृष्ण ने ‘समय सबसे बलवान है’, ‘कर्म ही पूजा है’  भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए उपदेश के बारे में, जो जीवन का मूल मंत्र हैं.

महाभारत के दौरान अर्जुन विचलित थे और उनसे शस्त्र भी नहीं उठ रहे थे. तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- समय बड़ा बलवान है. यदि तुम सोचते हो कि तुम शस्त्र नहीं उठाओगे तो इन पापियों का संहार नहीं होगा. अरे अर्जुन! तुम तो एक निमित्त हो, इनका संहार लिखा है और वह जरूर होगा.

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भगवान श्रीकृष्ण को कौरव और पांडवों के भविष्य के बारे में पता था. वे चाहते थे कि युद्ध ना हो इसलिए, श्रीकृष्ण स्वयं तीन बार शांति दूत बनकर आए और कौरव-पांडवों के बीच सुलह करानी चाही, किन्तु दुर्योधन नहीं माना. तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम पांडवों को आधा राज्य दे दो और दोनों शांति पूर्वक रहो, लेकिन दुर्योधन नहीं माना.

तब पांडवों ने कहा कि हमें राज्य की लालसा नहीं है. हमें केवल पांच गांव दिलवा दीजिए और पूरा राज्य चाहे दुर्योधन को दे दीजिए. लेकिन दुर्योधन ने साफ इंकार कर दिया और कहा कि पांच गांव तो क्या वह सुई की नोक जितनी जगह भी नहीं देगा.

महाभारत में श्रीकृष्ण ने युद्ध टालने के लिए कई प्रयास किए थे, लेकिन दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की बातें नहीं मानी और वह समय आ गया जब कौरवों-पांडवों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। कौरव पक्ष में दुर्योधन की ओर भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण जैसे महायौद्धा थे। पांडवों के साथ श्रीकृष्ण थे।

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युद्ध की शुरुआत में ही अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था, क्योंकि वह अपने कुटुंब के लोगों पर प्रहार करना नहीं चाहता था। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म का महत्व बताया है। इन बातों का ध्यान रखने पर हमारी भी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं।

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