Brihaspati Dev Ji Ki Aarti:श्री बृहस्पति देव की आरती के लाभ
Brihaspati Dev Ji Ki Aarti:श्री बृहस्पति देव को देवताओं का गुरु माना जाता है। वे ज्ञान, बुद्धि और धन के देवता हैं। उनकी आरती करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं।
- ज्ञान वृद्धि: बृहस्पति देव ज्ञान के देवता हैं। उनकी आरती करने से बुद्धि में वृद्धि होती है और विद्या प्राप्ति होती है।
- ग्रह दोष निवारण: बृहस्पति ग्रह को शुभ ग्रह माना जाता है। उनकी पूजा करने से ग्रह दोष दूर होते हैं।
- धन लाभ: बृहस्पति देव धन के देवता भी हैं। उनकी पूजा करने से धन में वृद्धि होती है।
- विवाह में सफलता: कुंडली में बृहस्पति के कमजोर होने से विवाह में बाधाएं आती हैं। उनकी पूजा करने से विवाह में सफलता मिलती है।
- समाज में मान-सम्मान: बृहस्पति देव की कृपा से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान मिलता है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: बृहस्पति देव आत्मविश्वास बढ़ाने वाले देवता हैं। उनकी पूजा करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- सफलता: बृहस्पति देव की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है।
Brihaspati Dev Ji Ki Aarti:कब करें आरती
- बृहस्पतिवार: बृहस्पतिवार का दिन बृहस्पति देव को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा और आरती करने का विशेष महत्व है।
- ग्रह शांति के लिए: यदि कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो तो उनकी पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए।
कैसे करें आरती
- दीपक जलाएं: आरती करते समय घी का दीपक जलाएं।
- धूपबत्ती जलाएं: शुद्धता के लिए धूपबत्ती जलाएं।
- फूल चढ़ाएं: पीले रंग के फूल चढ़ाएं।
- आरती उतारें: आरती की थाली लेकर बृहस्पति देव के चित्र या मूर्ति के सामने घुमाएं और आरती गाएं।
नोट: किसी भी देवी-देवता की पूजा करते समय सच्चे मन से की जानी चाहिए।
अन्य जानकारी:
- बृहस्पति देव के मंत्र: बृहस्पति देव के मंत्र जाप करने से भी कई लाभ मिलते हैं।
- बृहस्पति देव की कहानी: बृहस्पति देव की कहानी बहुत ही रोचक है।
- बृहस्पति देव मंदिर: भारत में कई जगहों पर बृहस्पति देव के मंदिर स्थित हैं।
Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti:श्री बृहस्पति देव की आरती
हिन्दू धर्म में बृहस्पति देव को सभी देवताओं का गुरु माना जाता है। गुरुवार के व्रत में बृहस्पति देव की आरती करने का विधान माना जाता है, अतः श्री बृहस्पति देव की आरती निम्न लिखित है।
जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥