Makar Sankranti 2025: हिंदू धर्म में मकर संक्रांति काफी महत्व है. इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं. मान्यता है कि इसी दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है. वैसे मकर संक्रांति का महाभारत से भी गहरा संबंध है. भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे, लेकिन अपना शरीर नहीं त्यागा क्योंकि वे चाहते थे कि जिस दिन सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे अपने प्राणों का त्याग करेंगे.

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है, खासकर महाभारत के संदर्भ में, जब भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और इस दिन अपने प्राण का त्याग कर दिया था।

हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति इस साल 14 जनवरी को मनाई जाएगी, जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि सूर्य के गोचर से खरमास समाप्त होता है और बसंत ऋतु का आगमन होता है। मकर संक्रांति का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है, खासकर महाभारत के संदर्भ में, जब भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और इस दिन अपने प्राण त्यागे।

Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति आज है और आज सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं. वैदिक ज्योतिष के मुताबिक, सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है और इसलिए, इनका गोचर भी खास माना जाता है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य के गोचर से खरमास का अंत हो जाता है और वसंत ऋतु के आगमन की आहट सुनाई देती है. इस पावन पर्व का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि भीष्म पितामह, जो 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर थे, उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी. इस अवसर से जुड़ी यह पौराणिक कथा आज भी लोगों के हृदय को छूती है.

भीष्म पितामह bhishma pitamah की प्राण त्यागने की कथा

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उत्तरायण के महत्व की व्याख्या

भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस समय पृथ्वी पर प्रकाश का वास होता है, और जो भी व्यक्ति इस समय शरीर त्यागता है, उसे पुनर्जन्म नहीं मिलता। वे सीधे ब्रह्मलोक में जाते हैं, यही कारण था कि भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया।

मकर संक्रांति का सूर्य के गोचर से संबंध

मकर संक्रांति का दिन सूर्य के गोचर का प्रतीक है, जब सूर्य अपनी राशि बदलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन से खरमास समाप्त होता है और वसंत ऋतु का आगमन होता है, जो जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रतीक मानी जाती है। इसके साथ ही, इस दिन को धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसे पुण्यकाल माना जाता है।

मकर संक्रांति के पुण्यकाल और महापुण्य काल

हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन पुण्यकाल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। वहीं, महापुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा, जो विशेष रूप से शुभ और फलदायी माना जाता है। इस समय में धार्मिक क्रियाएं और दान आदि करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।

Makar Sankranti

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *