Maha Kumbh Mela 2025 कुम्भ मेले में व्यक्ति पुण्य कमाने के उद्देश्य से संगम स्नान, दान, ध्यान करता है, इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि जाने-अन्जाने में ऐसा कोई भी कार्य न करें, जिससे पाप अर्जन हो।

कुम्भ मेले kumbh mela में व्यक्ति पुण्य कमाने के उद्देश्य से संगम स्नान, दान, ध्यान करता है, इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि जाने-अन्जाने में ऐसा कोई भी कार्य न करें, जिससे पाप अर्जन हो।

  • जिस तीर्थ स्थान में मनुष्य जाए, उसे वहाँ के महत्त्व से अवश्य परिचित होना चाहिए। महाकुम्भ पर्व में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक मनुष्य को चाहिये कि वह त्रिवेणी संगम के समीप कुम्भ मेला क्षेत्र में जब तक रहे तब तक निष्कपट, सरल हृदय, स्वार्थ रहित एवं धर्मपरायण होकर रहे।
  • धर्मशास्त्रकारों के अनुसार कुम्भ तीर्थ स्थल में पहुँचकर यथा नियम, यथाधिकार सबको दैनिक तीर्थ स्नान, देव मन्दिरों का दर्शन, सन्ध्योपासन, तर्पण, नित्य हवन, पञ्चमहायज्ञ, बलिवैश्वदेव, देवपूजन और वेद-पुराणादि का स्वाध्याय करना चाहिये।
  • कुम्भ क्षेत्र में जाकर यथा सम्भव राम नाम लिखना चाहिए, राम नाम लेखन अथवा अपने इष्ट का निरन्तर स्मरण करने से अनिष्ट ग्रहों का प्रभाव दूर होता है। राम भक्तों को चाहिए कि गंगा स्नान कर 108 के क्रम में लाल स्याही से राम का नाम अंकित करें। राम नाम की उर्जा त्रिवेणी संगम के क्षेत्र में अक्षय पुण्य एवं मनोकामना पूर्ति करने वाली मानी गई है, मोक्ष अभ्यर्थी को राम का नाम सद्गति एवं मोक्ष प्रदान करता है।
  • यज्ञ आदि धार्मिक कृत्यों एवं भण्डारे आदि अन्नक्षेत्र के निमित्त महाकुम्भ में उदार मन से अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्रद्धापूर्वक दान अवश्य देना चाहिये।
  • महाकुम्भ के दौरान साधु-महात्मा एवं विद्वानों के दर्शन और उपदेशों पर अनुसरण कर अपने जीवन को सर्वपयोगी बनाने का प्रयास करना चाहिये ।
  • खान-पान, रहन-सहन आदि सात्त्विक होना चाहिये । एक समय फलाहार और एक समय अन्नाहार करना चाहिये ।
  • पुण्य अर्जन करने वालों को तीर्थ में दान नहीं लेना चाहिये, बल्कि देने का प्रयास करना चाहिए।
  • कुम्भ कल्पवास के दौरान अपने इष्ट-देवताका सर्वदा स्मरण करना चाहिए तथा यथाशक्ति सबको धार्मिक एवं सेवा-संकल्प कार्यों में हाथ बँटाना चाहिये।
  • तीर्थ स्थान में अपने ही अन्न और वस्त्र का उपभोग करना चाहिए, दूसरे का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • कुम्भ पर्व में स्नान करते समय कुम्भ के स्वरूप का ध्यान और कुम्भ प्रार्थना करके ही स्नान करना चाहिए।
Krishnashtakam

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