रोहिणी व्रत एक हिंदू और जैन व्रत है जो हर महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र होता है। रोहिणी नक्षत्र को देवी लक्ष्मी का नक्षत्र माना जाता है। इसलिए इस व्रत को देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए किया जाता है।

Rohini Vrat रोहिणी व्रत का महत्व

रोहिणी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही उनके पति की लंबी उम्र होती है। नवविवाहित महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति की कामना से भी करती हैं।

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Rohini Vrat रोहिणी व्रत की पूजा विधि

रोहिणी व्रत की पूजा विधि निम्नलिखित है:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • अपने घर में एक साफ स्थान पर एक चौकी बिछाएं और उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • चौकी पर एक घी का दीपक जलाएं और देवी लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
  • देवी लक्ष्मी को फूल, अक्षत, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
  • देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें।
  • शाम को फिर से देवी लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें भोग लगाएं।

Rohini Vrat रोहिणी व्रत का पारण

रोहिणी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण के समय एक बार फिर देवी लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें प्रसाद अर्पित करें।

Rohini Vrat रोहिणी व्रत के नियम

रोहिणी व्रत के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:

  • इस दिन सुबह से शाम तक व्रत रखें।
  • इस दिन अनाज, मांस, मछली, अंडा आदि का सेवन न करें।
  • इस दिन गुस्सा, क्रोध आदि बुरे भावों से बचें।

रोहिणी (Rohini) व्रत एक पवित्र व्रत है जो महिलाओं को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करता है। इस व्रत को विधि-विधान से करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मंगलवार, 28 नवंबर 2023
प्रारंभ: 27 नवंबर 2023 दोपहर 01:52 बजे
समाप्त : 28 नवंबर 2023 अपराह्न 01:58 बजे

रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लोगों का महत्वपूर्ण व्रत है इस व्रत को जैन समुदाय के लोग करते है। यह व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता हैं। इसलिए इसे व्रत को रोहिणी व्रत कहा जाता है। रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर रोहिणी व्रत का पारण किया जाता है। रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद मार्गशीर्ष नक्षत्र आता है। रोहिणी व्रत एक वर्ष में 12 होते है अर्थात् यह प्रत्येक महीनें में आता है। फलाहार सूर्यास्त से पहले किया जाता है क्योंकि रात को भोजन नहीं किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन 3, 5 या 7 वर्षों तक लगातार किया जाता है। अगर उचित अवधि की बात करें तो यह 5 वर्ष और 5 महीने है। इस व्रत का समापन उद्यापन द्वारा ही किया जाता है। यह व्रत पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं। हालांकि, स्त्रियों के लिए यह व्रत अनिवार्य माना गया है। जैन समुदाय में यह मान्यता है कि यह व्रत विशेष फल देता है तथा कर्म बन्धन से छुटकारा दिलाने में सहायक होता हे।

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