नाग पंचमी पूजा आज है. आज 21 अगस्त दिन सोमवार है. आज हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है. इस विशेष दिन पर नाग देवता की विधिवत उपासना और पूजा की जाती है. नाग पंचमी के दिन नाग देवता को जल चढ़ाकर पूजा-पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और कई प्रकार की समस्याएं टल जाती है. आइए जानते हैं, नाग पंचमी पर शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इससे जुड़ी पूरी जानकारी के बारे में………….
नाग पंचमी पूजन विधि
- नागपंचमी पूजन के लिए घर के दरवाजे के दोनों तरफ नाग की आकृति जरुर बनाएं.
- इसके बाद घी, दूध और जल से तर्पण करें.
- फिर दीप, धूप, माला, फूल आदि से विधिवत पूजा करें.
- इसके बाद गेहूं, दूध, धान के लावा आदि का भोग लगाएं.
- नाग पंजमी पूजन से कुलों तक सर्प दोष से मुक्ति मिलती है.
- नाग पंचमी पर बन रहे शुभ संयोग
- नाग पंचमी के दिन यानि आज चित्रा नक्षत्र, शुभ और शुक्ल युग बन रहा है. जिसे पूजा-पाठ के लिए बेहद शुभ माना जाता है. चित्रा नक्षत्र पूरी रात रहेगा. शुभ योग रात 10 बजकर 21 मिनट तक रहेगा. फिर शुक्ल योग आरंभ होगा.
- नाग पंचमी 2023 शुभ योग
- इस वर्ष नाग पंचमी बेहद खास है. इस दिन शुभ संयोग बन रहा है. नाग पंचमी का त्योहार सोमवार के दिन पड़ रहा है. सोमवार का दिन भगवान शिव का समर्पित है और यह सावन महीने का सातवां सोमवार होगा. वहीं नाग पंचमी के दिन 2 शुभ योग का निर्माण हो रहा है. 21 अगस्त को सुबह से लेकर रात 09 बजकर 04 मिनट तक शुभ योग होगा. फिर इसके शुक्ल योग शुरू हो जाएगा. नाग पंचमी के दिन सुबह 11 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त होगा.
- नाग पंचमी की व्रत कथा
- प्राचीन काल में एक सेठजी थे जिनके सात पुत्र थे और सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन उस घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी एक साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने के लिए निकल पड़ीं। जब बहुएं मिट्टी खोद रही थीं तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी।
- यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोका और कहा इसे मत मारो? यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब वो सांप एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा मैं अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। इतना कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था वो उसे भूल गई।
- उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो वो सब को साथ लेकर वहां पहुंची। सर्प अभी भी उस स्थान पर बैठा था जिसे देखकर छोटी बहूं बोली: सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा: तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण में तुझे अब तक डस लेता। वह बोली: भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं।
- तब सर्प बोला: अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भाई तुझे मुझसे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली: मेरा कोई भैया! नहीं है, अच्छा हुआ तुम मेरे भाई बन गए। कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सांप मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो। सबने कहा इसका तो कोई भाई नहीं है फिर तुम कौन हो।
- तो वह बोला: मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर परिवार के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना मत और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। छोटी बहू ने वैसा ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। सर्प के घर के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
- इस तरह से वो उसके घर में रहने लगी। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा: मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा और उसने सांप को गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुख जल गया। यह देखकर सर्प की माता को गुस्सा आ गया।परंतु सर्प के समझाने पर वह चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेजना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर घर पहुंचा दिया।
- इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू उसने जलने लगी और कहने लगी कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने जब ये वचन सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन वस्तुओं को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर दे दी।
- सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया। जिसकी प्रशंसा उस राज्य की रानी ने भी सुनी और वो राजा से बोली कि: सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार तुरंत ही ले आओ। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह हमें दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार लेकर उन्हें दे दिया।
- छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सांप भाई को याद किया और उससे प्रार्थना की: भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जैसे ही रानी वो हार पहनें वह सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वो हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प में बदल गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और डर गई।
- यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी स्वयं छोटी बहू को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा: तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली: राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए ये हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और अगर इसे कोई और पहनता है तो ये उसके गले में सर्प बन जाता है।
- यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा: अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार दिया। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि ठीक-ठीक बता ये धन कहां से आया है। तब वह स्त्री फिर से अपने सर्प भाई को याद करने लगी।
- तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा: यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर किसी ने संदेह प्रकट किया तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का सत्कार किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सांप को भाई मानकर उसकी पूजा करनी लगीं।
- नाग पंचमी की पौराणिक कहानी
- नाग पंचमी की पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों के अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने नागों से बदला लेने और उनके वंश के विनाश के लिए एक यज्ञ किया। वह नागों से अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने की वजह होने का बदला लेना चाहता था।
- उनके इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था और नागों की रक्षा की थी। यह तिथि सावन की पंचमी मानी जाती है। सांपों को शीतलता देने के लिए उन्होंने उनके शरीर पर दूध की धार डाली थी। तब नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी उनकी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है।
- नाग पंचमी की पूजा कैसे करें
- नागपंचमी पर भगवान शिव के प्रिय नाग देवता की पूजा होती है। इसके लिए घर के दरवाजे के दोनों तरफ नाग की आठ आकृतियां बनाएं और हल्दी, रोली, चावल, घी, दूध, फूल आदि से नाग देवता की पूजा करें। नाग पंचमी का भोग एक दिन पहले तैयार किया जाता है। मंदिरों या शिवालयों में इस दिन तांबे के नाग की पूजा होती है। पूजन में नाग पंचमी व्रत कथा के पर नाग देव को प्रसन्न करने के लिए आरती की जाती है।
- मान्यता है कि नाग देवता की पूजा के साथ भगवान शिव का पूजन भी होना चाहिए। साथ ही इस दिन रुद्राभिषेक कराना शुभ फल देता है।