भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के रणभूमि में अर्जुन के मन में धर्म और युद्ध के बीच चल रहे ध्वन्ध को गीता के उपदेश के माध्यम से समझाया था। उन्हीं उपदेशों को समझने से वर्तमान के समय में भी व्यक्ति सफलता हासिल कर सकता है।
श्री कृष्ण का जीवन ऐसी ही बातों से भरा पड़ा है, ज़रूरत है नज़रिए की। उनका जीवन आपके लिए माइथोलॉजी का एक हिस्सा मात्र भी हो सकता है और आपका पूरा जीवन बदलकर रख देने वाला ज्ञान भी। यह हमें तय करना है कि हम उनके जीवन से लेना क्या चाहते हैं। श्री कृष्ण मात्र कथाओं में पढ़े या सुने जाने वाले पात्र नहीं, वह चरित्र और व्यवहार में उतारे जाने वाले देव हैं। वह हमें सीख देते हैं कि,
सिर्फ मुर्दों को आराम है, ज़िंदगी संघर्ष का दूसरा नाम है
कभी अगर आपको जीवन की स्थितियों पर रोना आए, तो एक बार श्री कृष्ण की जीवनी पर नज़र ज़रूर डाल लें। रोना बंद कर देंगे आप। श्री कृष्ण ने एक जेल में जन्म लिया था और जन्म लेने के तुरंत बाद ही उन्हें रात में ही उफनती यमुना पार कर गोकुल ले जाया गया। तीसरे दिन ही राक्षसनी पूतना उन्हें मारने आ पहुंची और यहां से जो संघर्ष का सिलसिला शुरू हुआ, वह देह त्यागने तक बना रहा।
शिक्षा वही जो अज्ञान घटाए, कौशल बढ़ाए
श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर पूरी की थी। कहा जाता है कि 64 दिन में उन्होंने 64 कलाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था। वैदिक ज्ञान के अलावा उन्होंने कलाएं सीखीं। शिक्षा ऐसी ही होनी चाहिए, जो हमारे व्यक्तित्व का रचनात्मक विकास करे। संगीत, नृत्य, युद्ध सहित 64 कलाएं कृष्ण के व्यक्तित्व का हिस्सा बनीं। अगर आप विद्यार्थी हैं, तो ख़ुद को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित ना रखें। अपने कौशल पर ध्यान दें। हरफनमौला बनें। अगर आपके बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, तो उन्हें अपने व्यक्तित्व को कौशल-समृद्ध करने को प्रोत्साहित करें। उनमें कोरा ज्ञान ना भरें। उनकी पढ़ाई ऐसी हो कि उनकी रचनात्मकता को नए आयाम मिलें।
गीता के इन उपदेश से जानें सफलता का रहस्य
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
भगवद गीता के अनुसार केवल कर्म पर ही व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन उसका फल कैसा होगा यह कोई नहीं जानता है। इसलिए फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहना ही समझदारी का काम है और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उससे अधिक लगाव न हो।