माता पार्वती और महादेव का अप्रतिम प्रेम
माता पार्वती और महादेव के अप्रतिम प्रेम से पूरा संसार वाकिफ है। कहते हैं कि उनके आगे प्रेम की पराकाष्ठा भी छोटी महसूस होने लगती है। कई ऐसे पौराणिक किस्से भी सुनने को मिलते हैं जहां देवी-देवताओं ने स्वयं भोलेनाथ के प्रेम को असीम और अनन्य बताया है। शायद यही वजह है कि महादेव ने मां पार्वती को अपने आधे अंग पर स्थान दिया और स्वयं अर्धनारीश्वर कहलाए। तो आइए आज महा शिव रात्रि के पवित्र मौके पर आपको बताते हैं मां पार्वती और महादेव के प्रेम और उनके विवाह की रोचक कथा
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महादेव को पाने के लिए मां का कठोर संकल्प
माता पार्वती भगवान शिव को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। वह दृढ़ संकल्पित थीं कि विवाह करेंगी तो भोलेनाथ के साथ ही करेंगी। उधर देवता भी यही चाहते थे। देवताओं ने माता पार्वती के विवाह का प्रस्ताव कन्दर्प से भगवान शिव के पास भेजा। जिसे भोलेनाथ ने ठुकरा दिया और उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्म भी कर दिया। लेकिन माता इससे भी विचलित नहीं हुईं और कठोर तपस्या शुरू कर दी।
तब रीझ गए भोलेबाबा माता पार्वती पर
देवी पार्वती की तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। बडे़-बड़े पहाड़ डगमगाने लगे। देवता भी मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। भोले बाबा भी पार्वती के तप से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर कहा कि वह किसी राजकुमार से विवाह कर लें। उन्होंने कहा कि उनके साथ रहना आसान नहीं होगा। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि वह उन्हें ही अपना पति मान चुकी हैं। अब उनके सिवा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। पार्वती के इस असीम प्रेम को देखकर भोलेनाथ विवाह के लिए मान गए।
जब अनोखी बारात लेकर शिव चले ब्याहने
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव जब माता पार्वती को ब्याहने पहुंचे तो उनके साथ संपूर्ण जगत के भूत-प्रेत थे। इसके अलावा डाकिनियां, शाकिनियां और चुड़ैलें भी शिव जी की बारात में शामिल थीं। उन्होंने ने ही भोलेनाथ का भस्म से श्रृंगार किया। हड्डियों की माला पहनाई। इस अनोखी बारात को देखकर तो रानी मैना देवी यानी कि माता पार्वती की मां हैरान रह गईं। उन्होंने अपनी बेटी का विवाह करने से इंकार कर दिया।
प्रेम की प्राप्ति के लिए जब मां को मनाया
शिव के इस रूप को देखकर माता पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वह विवाह की परंपरा के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद भोलेनाथ ने उनकी विनती स्वीकार की और दुल्हे के रूप में तैयार हुए। उनके इस अनुपम सौंदर्य को देखकर रानी मैना देवी चकित रह गईं। इसके बाद सृष्टि रचयिता श्री ब्रह्मा जी की मौजूदगी में देवी पार्वती और भोलेनाथ का विवाह संपन्न हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव -पार्वती के विवाह की यह तिथि ही महा शिव रात्रि कहलाई।
इसलिए विशेष है महाशिवरात्रि का दिन
मान्यता है कि महा शिव रात्रि का व्रत करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और शिव जी के साथ-साथ माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है। कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। इसके लिए विद्वानजन बताते हैं कि कुंवारी कन्याओं को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए। इसके बाद किसी भी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां पर शिव-पार्वती एक साथ विराजते हों। पार्वतीजी को सुहाग का समान अर्पित करते हुए पार्वती और शिव को लाल रंग कलावे से 7 बार बांध देना चाहिए। इसके बाद शीघ्र विवाह की प्रार्थना करनी चाहिए। वहीं सुहागिन स्त्रियों को इस पूजा से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।