भगवान शिव की पत्नी मां पार्वती हैं और इन दोनों का जन्म जन्मांतरोंं का संबंध है. पुराणों में इनके विवाह की कई तरह की कथाएं हैं. लोकमान्यताओं के अनुसार, शिवजी ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में पार्वती से विवाह किया था. जहां के लोग कहते हैं कि आज भी वहां अग्नि की अखंड ज्योति जल रही है. वो ज्योति कभी बुझती नहीं हैं. बताया जाता है कि, शिव-पार्वती उसी ज्योति के सामने विवाह बंधन में बंधे थे.
हिमालय के राजा हिमवंत और उनकी पत्नी मेनादेवी शिव जी के भक्त थे। उनकी इच्छा एक ऐसी पुत्री पाने की थी जिसका विवाह में शिव जी के साथ कर सके। मेनादेवी ने शिवजी की पत्नी गौरीदेवी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी। कई दिनों तक वह बिना खाए पिए तप करती रही। गौरीदेवी ने प्रसन्न होकर मेनादेवी की बेटी के रूप में जन्म लेने का वचन दे दिया।
गौरीदेवी ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इसके बाद उन्होंने मेनादेवी की बेटी के रूप में जन्म लिया, जिसका नाम पार्वती रखा गया। पार्वती ने जब बोलना शुरू किया तो उनके मुंह में पहला शब्द शिव ही निकला। बड़ी होकर वह बहुत सुंदर युवती बनी।
इस बीच शिवजी ने अपनी पत्नी की मृत्यु से दुखी होकर लंबा ध्यान शुरू कर दिया था। हिमवंत को आशंका हो रही थी की शायद शिवजी गहन ध्यान मैं होने के कारण पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार ना करें। उन्होंने समस्या के समाधान के लिए नारद को बुलाया। नारद ने उनसे कहा कि पार्वती तपस्या के जरिए शिव जी का हृदय जीत सकती थी। हिमवंत ने पार्वती को शिव जी के पास ही भेज दिया। पार्वती ने दिन-रात उनकी पूजा और सेवा की।
शिवजी पार्वती की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन उन्होंने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने युवा ब्राह्मण का रूप धारण किया और पार्वती के पास जाकर कहने लगे कि भिकारी की तरह रहने वाले शिवजी से विवाह करना सही नहीं होगा। पार्वती यह सुनकर बहुत क्रोधित हुई। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वे शिव को छोड़कर और किसी के साथ विवाह नहीं करेंगी। उनके उत्तर से संतुष्ट होकर शिव अपने असली रूप में आ गए और पार्वती से विवाह करने को तैयार हो गए। हिमवंत ने धूमधाम से दोनों का विवाह कर दिया।