वृंदा के शाप से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब माता लक्ष्मी की याचना पर वृंदा ने शाप वापस लिया और विष्णु जी को शाप मुक्त कर खुद पति जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा के सती राख से एक पौधा का सृजन हुआ, जिसे तुलसी कहा गया। कालांतर में विष्णु जी ने वृंदा को वरदान दिया कि मेरे साथ आपकी पूजा-उपासना जरूर की जाएगी
तुलसी का जन्म
तुलसी को हिंदू शास्त्रों में वृंदा के नाम से जाना जाता है। वह कालनेमि नामक राक्षस राजा की एक सुंदर राजकुमारी थी। उनका विवाह जालंधर से हुआ था जो भगवान शिव का एक शक्तिशाली हिस्सा था। जालंधर में अपार शक्ति थी क्योंकि वह भगवान शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि से उत्पन्न हुआ था। जालंधर को राजकुमारी वृंदा से प्यार हो गया, जो एक बेहद पवित्र और एक समर्पित महिला थी।
सनातन धर्म में तुलसी का विशेष महत्व है। हर रोज लोग स्नान-ध्यान के बाद तुलसी जी की पूजा आराधना जरूर करते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी की कृपा पाना है तो रोजाना सुबह में तुलसी को जल का अर्घ्य देना चाहिए और शाम में दीपक जलाकर आरती करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि तुलसी जी भगवान विष्णु जी की अर्धांगनी हैं, जो माता लक्ष्मी की स्वरूप हैं। आइए जानते हैं कि क्यों तुलसी पूजा क्यों की जाती है और पूजा कैसे करनी चाहिए-
सूर्य ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा क्या बताती है, नहीं जानते हैं तो यहां पढ़ें
तुलसी जी की पूजा क्यों की जाती है
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, चिरकाल में वृंदा नामक एक युवती रहती थी, जो कि भगवान विष्णु जी की परम भक्त थीं, लेकिन वह राक्षस कुल की थीं। कालांतर में वृंदा की शादी जलंधर नामक राक्षस से हुई। इसके बाद वह कुशल गृहिणी बनकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगीं। इसके बावजूद वह भगवान विष्णु जी की नित्य पूजा किया करती थीं।
इस युद्ध में देवता जलंधर को हरा न सके
इसी दौरान एक बार देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में जलंधर भी दानवों की तरफ से युद्ध करने गए। उस समय वृंदा ने कहा कि-हे स्वामी आप युद्ध में जा रहे हैं और मैं पूजा करने जा रही हूं। आप युद्ध और मैं तप करूंगी। इस तप में विष्णु जी से आपकी सलामती की प्रार्थना करूंगी। इसके बाद वृंदा विष्णु जी की तपस्या में लग गई। इस युद्ध में देवता जलंधर को हरा न पाए।
विष्णु जी शालिग्राम पत्थर बन गए
इसके बाद विष्णु जी जलंधर रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे। अपने पति को देख वृंदा झट से विष्णु जी के मायारूपी जलंधर के चरण स्पर्श की। उसी समय देवताओं ने जलंधर को युद्ध में परास्त कर उसका वध कर दिया। इसके बाद जलंधर का सर वृंदा के पास आकर गिरा। यह देख वृंदा समझ गई कि उसके साथ छल किया गया। उसी समय वृंदा ने छली विष्णु जी को पत्थर होने का शाप दिया। इस शाप के फलस्वरूप विष्णु जी शालिग्राम पत्थर बन गए।
वृंदा के शाप से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब माता लक्ष्मी की याचना पर वृंदा ने शाप वापस लिया और विष्णु जी को शाप मुक्त कर खुद पति जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा के सती राख से एक पौधा का सृजन हुआ, जिसे तुलसी कहा गया। कालांतर में विष्णु जी ने वृंदा को वरदान दिया कि मेरे साथ आपकी पूजा-उपासना जरूर की जाएगी।
रोजाना तुलसी जी की पूजा कैसे करें
हर रोज स्नान-ध्यान के बाद तुलसी जी के साथ शालिग्राम (प्राण प्रतिष्ठा कर ) पत्थर को भी जल का अर्घ्य दें। इसके बाद तुलसी स्थल का चार बार परिक्रमा करें। जब आप तुलसी जी की परिक्रमा करें तो निम्न मंत्र का उच्चारण जरूर करें।
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
यः पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु जी और माता तुलसी से घर की सुख, शांति और समृद्धि के प्रार्थना करें। इसी तरह शाम में तुलसी जी की रोजाना आरती करें। आरती ज्योति स्थल पर तंदुल से स्वस्तिक का चिन्ह जरूर बनाएं। उसी स्थान पर आरती ज्योति रखें।