पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में चंपापुरी नाम का एक नगर था। यहां पर राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ रहते थे। उनके 8 बच्चे थे। इनमें से 7 पुत्र और 1 बेटी जिसका नाम रोहिणी था। एक बार राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि कौन उसकी बेटी का वर होगा? तो उन्होंने कहा कि तेरी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। यह सुन वे बेहद खुश हुए और स्वयंवर का आयोजन कर दिया। स्वयंवर में रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाल दी। खुशी के माहौल में दोनों का विवाह संपन्न हुआ।रोहिणी व्रत का जैन समुदाय में खास महत्व है। यह व्रत आत्मा के विकारों को दूर कर कर्म बंध से छुटकारा दिलाने में सहायक है। रोहिणी व्रत के संबंध में पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ राज करते थे। उनके 7 पुत्र एवं 1 रोहिणी नाम की पुत्री थी।
एक समय हस्तिनापुर नगर के वन एक मुनिराज आए। श्री चारण मुनिराज के दर्शन करने के लिए राजा अपने प्रियजनों के साथ वहां आए। सभी ने उन्हें प्रणाम किया और धर्मोपदेश को ग्रहण किया। राजा ने मुनिराज से पूछा कि आखिर उनकी रानी इतनी शांतचित्त क्यों है? मुनिराज ने उत्तर देते हुए कहा कि इसी नगर में एक राजा था जिसका नाम वस्तुपाल था। इसका एक मित्र था जिसका नाम धनमित्र था। इसकी एक कन्या थी जो दुर्गांधा थी। धनमित्र हमेशा परेशान रहता था कि उससे क्या होगा और उससे कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने अपने पुत्री का विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण के साथ धन का लालच देकर कर दिया। लेकिन उसकी दुर्गंध से परेशान होकर वह एक महीने में ही उसे छोड़ गया।
इसी दौरान अमृतसेन मुनिराज नगर में विहार करते हुए आए। तब धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ उनकी वंदना करने गए। उन्होंने अपनी पुत्री के बारे में पूथा। तब उन्होंने कहा कि गिरनार पर्वत के पास एक नगर है जहां राजा भूपाल का राज्य है। उनकी रानी का नाम सिंधुमती है। एक दिन राजा अपनी रानी के साथ वनक्रीड़ा कर रहे थे तब रास्ते में उन्होंने मुनिराज को देखा। तब राजा ने रानी से घर जाकर कहा कि वो मुनि के लिए भोजन की व्यवस्था करे। रानी ने राजा की आज्ञा तो मान ली लेकिन उन्होंने क्रोधित होकर मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार दिया। इसेस मुनिराज को अत्यंत वेदना सहनी पड़ी और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
जब इस बात का पता राजा को चला तो उन्होंने रानी को राज्य से निकाल दिया। उसके शरीर में कोढ़ हो गया और प्राण त्यागने के बाद वह नरक में गई। दुखों को झेलने के बाद वह इसके बाद वह पशु योनि में उत्पन्न हुई और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्या के रूप में उत्पन्न हुई।
यह सुन धनमित्र ने पूछा कि क्या कोई ऐसा विधान या व्रत है जिसके जरिए इस पातक को दूर किया जा सके। तब मुनिराज ने कहा कि सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत पालन करो। जिस दिन हर मास रोहिणी नक्षत्र आए उस दिन चारों तरह के आहार का त्याग करें। साथ ही श्री जिन चैत्यालय में जाकर धर्मध्यान समेत 16 प्रहर व्यतीत करें। इश तरह यह व्रत 5 वर्ष और 5 माह तक करें। मुनिराज के कहे अनुसार, दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया और मरणोपरान्त स्वर्ग में प्रथम देवी हुईं।
इसके बाद वो अशोक की रानी बनीं। तब अशोक ने अपने बारे में पूछा तो मुनि ने काह कि उसके पिछले जन्म में वो भील था और उसने एक मुनि का उपसर्ग किया था। इसलिए वह मरकर नरक में गया। फिर उसने कई कुयोनियों में भ्रमण किया। फिर उसने एक वणिक के घर जन्म लिया जिसका अत्यंत घृणित शरीर था। फिर एक साधु के कहने पर उसने रोहिण व्रत किया जिसके फलस्वरूप स्वर्ग प्राप्त कर वह हस्तिनापुर का राजा बना। फिर उसका विवाह रोहिणी से हुआ। तब से यह मान्यता है कि राजा अशोक और रानी रोहिणी ने रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्वर्गादि सुख भोगा और मोक्ष को प्राप्त किया। ऐसे ही जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत करेगा उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी।