एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी सेना के साथ जंगल में ब्रह्मण के लिए गए होते है। उसी जंगल में परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि का आश्रम भी रहता है ।
सहस्त्रबाहु अर्जुन जंगल में विश्राम करने लिए लिए जमदग्नि के आश्रम देख अपनी सेनाओ के साथ आश्रम की और चल देते है ।
आश्रम पहुंचने के बाद ऋषि जमदग्नि सहस्त्रबाहु अर्जुन और उनकी सेनाओ का खूब सेवा सत्कार करते है और अपनी कामधेनु गाय की सहायता से उनका और उनकी सेनाओ के लिए राजसी भोजन की व्यवस्था भी करते है।
ऋषी जग्मद्नी द्वारा सहस्त्रबाहु और उनके सानिको का इत्नी जल्दी राजसी भोजन की व्यव्स्था देख अचम्भित हो जाते है और सोचने लगते है की इतनी जल्दी और वो भी राजसी भोजन का प्रबनध एक साधरण ऋषि मुनि कैसे कर सकता है। जरूर इसके पास कोई रहस्य है। सहस्त्रबाहु ऋषि जग्मद्नी से यह सभी व्यवस्था करने का राज पूछते है ।
चमत्कारी कामधेनु गाय को बालपूर्वक ले जाते है
ऋषि जगमदनी सहस्रबाहु अर्जुन को अपनी गाय कामधेनु के बारे में बातते हुए कहते है की महाराज यह सब इस गाय की कृपा है। कामधेनु गाय को देख और उसकी इस चमत्कार से प्रसन्न उस पर मोह जाते है और ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने की इच्छा जाहिर करते है। परन्तु ऋषि जग्मद्नी कामधेनु गाय को ले जाने से इंकार कर देते हैं।
ऋषि जग्मद्नी द्वारा मना करने पर सहस्रबाहु क्रोधित हो जाते है और बलपूर्वक काम धेनु गाय को अपने साथ ले जाते है।
अपने पिता के अपमान सुन परशुराम क्रोधित हो उठते है
कुछ समय बाद परशुराम जब आश्रम आते तो उन्हें उनके पिता घटना के बारे में बताते है और यह सुन परशुराम अत्यंत क्रोधित हो उठते और अपना फ़ारसु उठा सहस्रबाहु के नगर महिस्मती की और चल देते हैं।
सहस्रबाहु कामधेनु और अपनी सेनाओ के साथ रास्ते में ही होते है । सहस्रबाहु परशुराम को अपनी ओर त्रीव गति से आते हुए देख अपनी सेनाओ को परशुराम को रोकने का आदेश देते है।
सहस्रबाहु की सेना परशुरराम को रोकने के लिए उनके पास आती है पर कुछ पालों मे ही परशुराम हजारो सेनिको के रक्त से युद्ध भूमि को लाल कर देते है । अपनी सेनाओ का नष्ट होता देख सहस्रबाहु अर्जुन स्वयं परशुराम से युद्ध करने के लिए आ जाते हैं और घनघोर युद्ध प्रारम्भ हो जाता है।
सहस्रबाहु का वध
परन्तु सहस्रबाहु के लिए परशुराम के समक्ष टिक पाना असंभव ही था सहस्रबाहु जब अपनी हजारो भुजाओ से परशुराम को जकड़ने के लिए आगे बढते है तो परशुराम अपनी परसु से उनकी एक एक कर सभी भुजाओ को काट उसका सर धड़ से अलग कर डालते है ।
सहस्रबाहु अर्जुन वध के बाद भगववान परशुराम अपनी कामधेनु गाय को लेकर अपने पिता को सौप देते है। ऋषि जग्मद्नी अपने गाय को देख काफी प्रसन्न हो जाते है और अपने पुत्र परशुराम को गले लगाकर उन्हें आशीर्वाद देते है।
क्यों परशुराम पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहीन करते है
कहा जाता है जब सहस्रबाहु के पुत्रों ने अपने पिता का प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम के पिता का छल पूर्वक वध कर देते है। जब जमदन्गि का वध हो जाता है तो उनकी पत्नी रेणुका भी उनके साथ अग्नि में लीन हो जाती है।
इस घटना से परशुराम अति क्रोधित हो सहस्रबाहु के पुत्रों का वध कर देते है और साथ ही महिस्मती राज्य को भी उजाड़ डालते है और पृथ्वी से 21 बार सभी क्षत्रियों का नाश कर पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करने के बाद परशुराम एक बड़े पर्वत पर जा भगवान् शिव के ध्यान में लीन हो जाते है।
क्यों काटा था भगवान परशुराम ने अपनी ही माँ का सिर
पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम को श्री हरि विष्णु के अवतार माना गया है। भगवान विष्णु का यह सबसे क्रूर अवतार था। शिव जी द्वारा प्राप्त परशु के कारण ही उनका नाम परशुराम पड़ा था।
परशुराम महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका की संतान थे। परशुराम उनके सबसे छोटे कर लाडले पुत्र थे पांचो भाइयों में परशुराम ही सबसे तेजस्वी और न्याय पूर्ण योद्धा थे। धरती पर उनके जैसा योद्धा कोई नहीं था।
परशुराम अपने माता-पिता के सबसे लाडले और आज्ञाकारी पुत्र होते हुए भी उन्होंने माता का सिर काट दिया था आखिर उन्होने ऐसा कठोर कदम क्यों लेना पड़ा ऐसा क्या कारण था जो उनकी माता के जीवन से भी बढ़कर था। आगे हम इसके बारे में विस्तारपूर्वक पड़ेंगे।
परशुराम के पिता जगमदनी बड़े ज्ञानी और तपस्वी थे उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियों का ज्ञान था। परशुराम अपने पिता की आज्ञाकारी पुत्र थे और पिताजी की हर आज्ञा को पत्थर की लकीर मान हर हाल में पूर्ण करते थे।
माता रेणुका से हो गई थी यह एक भूल और महर्षि जमदग्नि हुए क्रोधित
एक बार की बात है ऋषि जग मदनी के स्नान के लिए पत्नी रेणुका नदी में पानी लेने के लिए गई वही कुछ दूरी पर राजा चित्र भी स्नान कर रहे थे। राजा चित्ररथ को देख वह काफी समय तक वह उन्हें ही स्नान करते देखती रही। उनका मन विचलित हो गया और भूल गई कि उन्हें अपने पति के लिए स्नान का पानी ले जाना था।
काफी समय हो गया महर्षि जमदग्नि पत्नी रेणुका की प्रतीक्षा में बैठे उनका इंतजार करते रहे। जब पत्नी रेणुका आश्रम पहुंची तो ऋषि जगमदनी ने अपनी ध्यानशक्ति से उनके देर में आने का कारण ज्ञात करना चहा इससे उन्हें सब ज्ञात हो गया और महाऋषि जगमादनी अपनी पत्नी पर क्रोधित हो उठे।
पिता ने दया चारो पुत्रों को दिया अपनी ही माँ का सर काट देने का आदेश
उसी समय उनके चारो पुत्र रघुवंशी शुरू वस्तु और विश्वासों भी आश्रम आ गए थे। महर्षि जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को बारी-बारी से अपनी मां का वध करने को कहा पर किसी ने भी माँ की मोहा वश ऐसा करने का हिम्मत नहीं जुटा पाए।
किसी ने भी पिता की आज्ञा को नहीं माना और सभी पीछे हट गए क्योंकि हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार किसी भी स्त्री की हत्या को बहुत बड़ा पाप माना गया है और यही अपनी ही मां का वध करने की बात थी लेकिन पिता आज्ञा का विरोध करना भी एक बड़ा अपराध है।
चारों पुत्र समझ नहीं पा रहे थे क्या करना उचित होगा जब ऋषि के चारों पुत्रों ने उनकी आज्ञा को नहीं माना तो अपने चारों पुत्रों को चेतना बुद्धि और विचार नष्ट होने का शार्प दे दि।
परशुराम ने ही अपने पिता के आदेश क्यों माना
वही थोड़ी देर में परशुराम भी आश्रम आ गए । परशुराम को देख महर्षि जमदग्नि ने उन्हें अपनी मां की और अपने चारों भाइयों का वध करने का आदेश दिया । अपनी पिता की आज्ञा पाकर उन्होंने अपनी माता और चारों भाइयों का वध कर डाला यह देख ऋषि जगमग काफी प्रसन्न हुए और परशुराम से वर मांगने के लिए कहा ।
परशुराम जानते थे कि उनके पिता बहुत बड़े ज्ञानी हैं और सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हैं । उन्हें अपने पिता की बातों से पूर्ण से अवगत था कि वह अपने पिता के आदेश मानेंगे तो उनके पिताजी उन्हें मुंह मांगा वरदान देंगे ।
इसलिए उनके पिताजी जब उनसे वरदान मांगने को कहते हैं तो परशुराम ने अपनी मां का और अपने चारों भाइयों को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगते है। इससे उनके पिता ने उनकी इच्छा मान माता रेणुका और चारों भाइयों को जीवित हो गए इस तरह परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा भी मानी और अपनी माता और भाइयों को जीवित भी करा लिया।
परशुराम ने अपनी पुनः जीवित माँ हत्या पाप के लिया किया पारयश्चित
परन्तु माता तो पुण्य जीवित हो गई पर उन पर अपनी मां हत्या का पाप चढ़ गया इस पाप से मुक्ति पाने के लिए परशुराम एक पर्वत पर शिव आराधना करने के लिए चले गए। कई वर्षों की कठोर तपस्या से प्रसन्न शिवजी ने उनके समक्ष आ गए और उन्हें मृत्यु कुंडली के जल में स्नान करने के आदेश दिया तभी वह अपनी माता के बाप से मुक्त हो पाएंग परशुराम ने शिवजी कहे अनुसार ऐसा ही किया और अपने माता हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त की
यह मृत्यु गुंडे हो वर्तमान राजस्थान के चित्तौड़ जिले में है स्थित है इस स्थान को मेवाड़ के तीर्थ स्थल भी कहा जाता है इस स्थान से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी पर भगवान शिव जी का मंदिर जिसे परशुराम जी ने खुद अपने परसों से काटकर बनाया था ।