पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की तीन पत्नियाँ- लक्ष्मी, गंगा और सरस्वती थीं। एक बार विष्णुजी ने गंगा के प्रति विशेष अनुराग और लगाव दिखाया जिसके फलस्वरूप सरस्वती के मन में ईर्ष्या भाव उत्पन्न हो गया। सरस्वती, तीनों पत्नियों के प्रति समान अनुरक्ति रखने के आर्योचित सिद्धांत की उपेक्षा करके गंगा के प्रति आसक्ति दिखाने के लिए अपने पति विष्णुजी को खरी-खोटी बातें सुनाने लगीं। सरस्वती ने गंगा को भी आड़े हाथों लेकर दुर्वचन कहे।विष्णुजी पत्नियों के इस कलह को देखकर प्रासाद से बाहर चले गए। बिना कुछ कहे इस तरह पति के बाहर चले जाने से तो सरस्वती का क्रोध और भी भड़क उठा। उन्होंने गंगा के केश पकड़े और मारने को लपकीं। लक्ष्मी ने बीच में आकर दोनों को शांत करने का प्रयास किया। इस पर सरस्वती ने लक्ष्मी को भी गंगा की सहायिका मानते हुए उनका अपमान किया और उन्हें बीच में आने के कारण वृक्ष हो जाने का शाप दे दिया।
इधर गंगा अपने कारण निरपराध लक्ष्मी को दंडित होते देखकर अत्यधिक क्षुब्ध हो उठीं और उन्होंने सरस्वती को भूतल पर नदी हो जाने का शाप दिया। सरस्वती भी पीछे नहीं रहीं। उन्होंने भी गंगा को मृतक की अस्थियाँ ढोने वाली नदी बनकर पृथ्वी तल पर बहने का शाप दे दिया।
जब विष्णुजी अपने पार्षदों सहित लौटे तो उन्हें अपनी पत्नियों के परस्पर कलह और शाप आदि का पूरा पता लगा। विष्णुजी ने लक्ष्मी की शांत वृत्ति, सहनशीलता और उदारता को देखकर केवल उसे ही पत्नी रूप में अपने पास रखना उचित समझा। विष्णुजी ने गंगा और सरस्वती को त्याग देने का निश्चय कर लिया।
वियोग की अवश्यंभावी स्थिति से व्यथित होकर दोनों ही कातर स्वरों में शापों से शीघ्र निपटने का उपाय पूछने लगीं। विष्णु ने उन्हें बताया कि गंगा तो नदी रूप में स्वर्ग, भूलोक और पाताल लोक में त्रिपथगा होकर बहेंगी। उनका स्थान शिव जटाओं में भी होगा। अंश रूप में ही वे स्वर्ग में मेरे सानिध्य में रहेंगी। सरस्वती प्रधान रूप से पृथ्वी तल पर रहेंगी और अंश रूप में मेरे पास। लक्ष्मी ‘तुलसी’ वृक्ष बनकर मेरे शालिग्राम स्वरूप से विवाह करके समग्र और स्थायी रूप से मेरा पत्नीत्व ग्रहण करेंगी। दोनों देवियाँ शापानुसार नदी रूप में पृथ्वी पर आईं।
पृथ्वी पर स्रोतों में जो सर (जल) दिखाई देता है, उस सर का स्वामी सरस्वान कहलाता है और सरस्वान की पत्नी होने से सरस्वती सरस्वती कहलाईं। सरस्वती नदी तीर्थरूपा हैं। वे पापनाश के लिए जलती अग्नि के समान हैं।
यही गंगा और सरस्वती शाप के कारण भूलोक में नदी बनकर बहती हैं। राधा-कृष्ण के शरीरों से उत्पन्न उनके स्वरूपों का दर्शन कराने वाली गंगा अत्यंत पवित्र, सर्व सिद्धिदात्री तथा तीर्थरूपा नदी हैं।
भविष्य पुराणों में कहा गया है कि सरस्वती के शाप से भारतवर्ष में आईं गंगा शाप की अवधि पूरी हो जाने पर यानी कलियुग की समाप्ति पर पुन: भगवान श्रीहरि की आज्ञा से बैकुण्ठ चली जाएँगी।