कृष्ण की बांसुरी की तान पर गोपियों समेत पूरा गोकुल झूम उठता था. श्रीकृष्ण ने अंतिम बार राधा के लिए बांसुरी की तान छेड़ी थी, जिनके निधन के बाद कृष्ण ने बांसुरी का पूरी उम्र के लिए त्याग कर दिया.
कृष्ण की कल्पना उनकी मुरली बिना मुश्किल है. इसकी तान पर गोपियां सुध-बुध खोकर खिचीं चली आती थीं. प्रेम और श्रृंगार की प्रतीक बांसुरी कृष्ण को तोहफे में मिली थी. कृष्ण ने भी अपनी बांसुरी अपनी याद के तौर पर भेंट स्वरूप दे दी.
द्वापरयुग में जब श्री कृष्ण जन्मे तो सभी देवी-देवता भेष बदल-बदलकर उनके दर्शन को आ रहे थे. भोलेनाथ भी उनके दर्शन के लिए आना चाहते थे, लेकिन अब प्रभु के दर्शन को आना था तो भला वो खाली हाथ कैसे जा सकते हैं? शंकरजी के पास दधीचि ऋषि की अस्थि थी, जिससे उन्हें एक बांसुरी बनाई. कृष्ण से मिलते हुए उन्होंने कृष्ण को यह बांसुरी भेंट स्वरूप दी. इसके बाद कृष्ण ने बांसुरी को जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया और इस तरह वह मुरलीधर बन गए. कृष्ण गोकुल से जब मथुरा जा रहे थे, इससे पहले महारास हुई. इसके बाद कृष्ण ने अपनी बांसुरी प्रेयसी राधा को देते हुए बांसुरी बजाना छोड़ दिया.
आखिरी बार द्वारिका में मिले थे राधा-कृष्ण
कहा जाता है कि राधा कृष्ण की आखिरी मुलाकात द्वारिका में हुई. तब राधा ने अंतिम इच्छा के तौर पर कृष्ण से बांसुरी बाजने का आग्रह किया. राधा के अनुरोध को कृष्ण ने मान लिया और एक बार फिर बांसुरी की मधुर तान छेड़ी. कृष्ण की बांसुरी की धुन में खोकर राधा ने वहीं अपनी देह त्याग दी. यह अंतिम मौका था, जब कृष्ण ने बांसुरी बजाई थी. राधा वियोग के चलते दुखी होकर कृष्ण ने अपनी बांसुरी सदा के लिए तोडक़र झाडिय़ों में फेंक दी.