Upamanyu Krutha Shiva Stotram

Upamanyu Krutha Shiva Stotram:उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम् भगवान शिव की स्तुति के लिए प्रसिद्ध है और शिवभक्तों के बीच इसका विशेष महत्व है। यह स्तोत्रम ऋषि उपमन्यु द्वारा रचित है, जिन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उनकी कृपा प्राप्त की थी। इस स्तुति के पाठ से शिवभक्तों को शिव कृपा, मानसिक शांति, और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम् का रहस्य:Upamanyu Krutha Shiva Stotram

  1. शिव की कृपा: इस स्तोत्र में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
  2. तपस्वी ऋषि उपमन्यु: ऋषि उपमन्यु की घोर तपस्या और उनकी शिवभक्ति ही इस स्तोत्र के निर्माण का आधार है। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत भावपूर्ण स्तुति की थी।
  3. शिव का स्वरूप: इस स्तोत्र में भगवान शिव के त्रिनेत्र, गंगाधर, चंद्रशेखर, कैलाशवासी और करुणामय स्वरूप का वर्णन किया गया है।
Upamanyu Krutha Shiva Stotram

उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम् के लाभ:Upamanyu Krutha Shiva Stotram

  1. मनोकामनाओं की पूर्ति: जो भी श्रद्धालु इस स्तोत्र का नियमित पाठ करते हैं, उनकी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र आत्मिक शुद्धि और ध्यान में गहराई लाने के लिए उपयोगी है।
  3. नकारात्मकता से मुक्ति: इस स्तुति के जाप से जीवन की बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
  4. सर्वरोग निवारण: शिव की कृपा से स्वास्थ्य संबंधी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  5. आध्यात्मिक शांति: मानसिक और भावनात्मक शांति के लिए इसका पाठ अत्यंत प्रभावकारी है।

पाठ विधि:Upamanyu Krutha Shiva Stotram

  1. प्रातः काल या संध्या समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान शिव का ध्यान कर दीप जलाएँ और बेलपत्र व पुष्प अर्पित करें।
  3. श्रद्धापूर्वक उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम् का पाठ करें।
  4. अंत में ‘ॐ नमः शिवाय’ का 108 बार जाप करें।

शिव स्तुति के महत्व को आत्मसात करें:Upamanyu Krutha Shiva Stotram

भगवान शिव के इस स्तोत्र के माध्यम से न केवल ऋषि उपमन्यु ने शिव कृपा प्राप्त की, बल्कि यह स्तोत्र आज भी अनगिनत भक्तों के लिए वरदान साबित होता है।

“जो शिव की भक्ति में लीन होता है, वह स्वयं शिवत्व को प्राप्त कर लेता है।

उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम् (Upamanyu Krutha Shiva Stotram)

जय शंकर पार्वतीपते मृडशम्भो शशिखण्डमण्डन ।

मदनान्तक भक्तवत्सल! प्रियकैलास दयासुधांबुधे  ॥१॥

सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दुःखशरेण खण्डितः।

शशिखण्डशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीश्वरम् ॥२॥

महतः परितःप्रसर्पतः तमसो दर्शनभेदिनो भिदे।

 दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि नः॥३॥

न वयं तव चर्मचक्षुषा पदवीमप्युपवीक्षितुं क्षमाः।

कृपयाऽभयदेन चक्षुषा सकलेनेश विलोकयाशु माम् ॥४॥

त्वदनुस्मृतिरेव पावनी स्तुतियुक्ता न हि वाक्तुमीश सा।

 मधुरं हि पयः स्वभावतो ननु कीदृक् सितशर्करयान्वितम् ॥५॥

सविषोप्यमृतायते भवान् शवमुण्डाभरणोऽपि पावनः।

 भव एव भवान्तकस्सतां समदृष्टिर्विषमेक्षणॊपि सन् ॥६॥

अपि शूलधरो निरामयो दृढवैराग्यधरोऽपि रागवान्।

अपि भैक्षचरो महेश्वरश्चरितं चित्रमिदं हि ते प्रभो ॥७॥

वितरत्यभिवाञ्छितं दृशा परिदृष्टः किल कल्पपादपः ।

हृदये स्मृत एव धीयते नमतेऽभिष्टफलप्रदो भवान् ॥८॥

सहसैव भुजंगपाशवान् विनिगृह्णाति न यावदन्तकः।

 अभयं कुत तावदाशु मे गतजीवस्य पुनः किमौषधैः ॥९॥

सविषैरिव भीमपन्नगैर्विषयैरेभिरलं परिक्षतं ।

अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिञ्चाशु दयावलोकनैः ॥१०॥

मुनयो बहवोऽत्र धन्यतां गमिता स्वाभिमतार्थदर्शिनः।

 करुणाकर येन तेन मामवसन्नं ननु पश्य चक्षुषा ॥११॥

प्रणमाम्यथ यामि चापरं शरणं कं कृपणाभयप्रदम्।

 विरहीव विभो प्रियामयं परिपश्यामि भवन्मयं जगत् ॥१२॥

बहवो भवतानुकंपिताः किमितीशान न मानुकंपसे।

 दधता किमु मन्दराचलं परमाणुः कमठेन दुर्धरः ॥१३॥

अशुचिर्यदिमाऽनुमन्यसे किमिदं मूर्ध्नि कपालदाम ते।

उत शाठ्यमसाधुसंगिनं विषलक्ष्मासि न किं द्विजिह्वधृक्॥१४॥

क्व दृशं विदधामि किं करोम्यनुतिष्ठामि कथं भयाकुलः।

 क्वनु तिष्ठसि रक्षरक्षमामयि शम्भो शरणागतोऽस्मि ते ॥१५॥

विलुठाम्यवनौ किमाकुलः किमुरोहन्मि शिरः छिनद्मि वा।

 किमु रोदिमि रारटीमि किं कृपणं मां न यदीक्षसे प्रभो ॥१६॥

शिव सर्वग शिव शर्मद प्रणतो देव दयां कुरुष्व मे।

 नम ईश्वर नाथ दिक्पते पुनरेवेश नमो नमोऽस्तु ते ॥१७॥

शरणं तरुणेन्दुशेखर शरणं मे गिरिराजकन्यका।

शरणं पुनरेव तावुभौ शरणं नान्यदवैमि दैवतम् ॥१८॥

उपमन्युकृतं स्तवोत्तमं जपतश्शंभुसमीपवर्तिः।

 अभिवाञ्छितभाग्यसंपदः परमायुः प्रददाति शंकरः ॥१९॥

उपमन्युकृतं स्तवोत्तमं प्रजपेद्यस्तु शिवस्य सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्य सोऽचिरात् सह तेनैव शेवेन मोदते ॥२०॥

Upamanyu Krutha Shiva Stotram

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