Mahishasura Mardini Stotram:महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् – अयि गिरिनन्दिनि: एक विस्तृत विश्लेषण

Mahishasura Mardini Stotram:महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् एक अत्यंत शक्तिशाली और भक्तिमय स्तोत्र है जो देवी दुर्गा की स्तुति करता है। इस स्तोत्र का एक विशेष रूप ‘अयि गिरिनन्दिनि’ नाम से जाना जाता है। ‘गिरिनन्दिनि’ का अर्थ है ‘पर्वत की पुत्री’, जो देवी दुर्गा का एक विशिष्ट नाम है।

Mahishasura Mardini Stotram:स्तोत्र का महत्व

यह स्तोत्र देवी दुर्गा की शक्ति, साहस और बुराई पर विजय प्राप्त करने की क्षमता का गुणगान करता है। यह स्तोत्र न केवल भक्तों के मन में देवी के प्रति श्रद्धा और भक्ति जगाता है, बल्कि उन्हें बुराई के खिलाफ लड़ने और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है।

Mahishasura Mardini Stotram:स्तोत्र की विशेषताएं

Mahishasura Mardini Stotram
  • लयात्मकता: इस स्तोत्र की भाषा अत्यंत लयात्मक और सुमधुर है, जो इसे गाने में आसान बनाती है।
  • शक्तिशाली शब्दावली: स्तोत्र में प्रयुक्त शब्दावली अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली है, जो देवी दुर्गा की शक्ति का वर्णन करती है।
  • विभिन्न रूप: इस स्तोत्र के कई रूप हैं, जिनमें से ‘अयि गिरिनन्दिनि’ सबसे लोकप्रिय है।
  • धार्मिक महत्व: यह स्तोत्र हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में गाया जाता है।

Mahishasura Mardini Stotram:स्तोत्र का अर्थ और व्याख्या

‘अयि गिरिनन्दिनि’ स्तोत्र में देवी दुर्गा को विभिन्न नामों से पुकारा गया है और उनकी शक्ति और गुणों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा को ब्रह्मांड की रक्षिका और बुराई का नाश करने वाली देवी के रूप में चित्रित करता है।

Mahishasura Mardini Stotram:स्तोत्र का लाभ

  • मन की शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ मन को शांत और स्थिर करता है।
  • बुराई से रक्षा: यह स्तोत्र बुरी शक्तियों से रक्षा करता है और व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करता है।
  • सफलता: यह स्तोत्र व्यक्ति को जीवन में सफलता दिलाने में मदद करता है।
  • आध्यात्मिक विकास: यह स्तोत्र व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।

निष्कर्ष

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और भक्तिमय स्तोत्र है जो देवी दुर्गा की महानता का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

क्या आप इस स्तोत्र के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? या आप जानना चाहते हैं कि इस स्तोत्र को कैसे गाया जाता है?

यहां कुछ अतिरिक्त जानकारी दी गई है:

  • महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का इतिहास: यह स्तोत्र प्राचीन काल से ही गाया जाता रहा है और इसकी उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं।
  • महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का प्रभाव: इस स्तोत्र का प्रभाव व्यक्ति के मन पर बहुत गहरा होता है और यह व्यक्ति को आत्मविश्वास और शक्ति प्रदान करता है।
  • महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का उपयोग: इस स्तोत्र का उपयोग विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और ध्यान में किया जाता है।

Mahishasura Mardini Stotram – Aigiri Nandini

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

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