हिंदुओं के लिए चैत्र का महीना बहुत ही शुभ और पवित्र होता है. इस महीने में मां दुर्गा के साथ-साथ भगवान श्री राम की भी पूजा-आराधना की जाती है. आपको बता दें, चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव यानी कि रामनवमी मनाया जाता है. इस दिन मां सिद्धिदात्री माता के साथ-साथ भगवान श्री राम की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
रामनवमी व्रत कथा
पौराणिक कथा की मानें तो भगवान श्री राम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण वनवास जा रहे थे. उस वक्त प्रभु श्रीराम विश्राम करने के लिए थोड़ी देर रुके. जहां भगवान विश्राम कर रहे थे वहीं पास में एक बुढ़िया रहती थी. भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता उस बुढ़िया के घर गए. उस वक्त बुढ़िया सूत काट रही थी. बुढ़िया ने श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता का आदर पूर्वक स्वागत किया और उन्हें स्नान ध्यान करवाकर भोजन करने के कहा. ये सुनकर श्रीराम ने उस बुढ़िया से कहा कि ‘माता’ मेरा हंस भी बहुत भूखा है, इसके लिए पहले मोती ला दो. फिर मैं बाद में भोजन करूंगा.
ये सुनकर बुढ़िया बहुत परेशान हो गई. लेकिन, बुढ़िया अपने घर आए मेहमानों का निरादर नहीं करना चाहती थी. इसी वजह से वे दौड़ते-दौड़ते अपने नगर के राजा के पास गई और उससे उधार में मोती देने को कहा. बुढ़िया की हैसियत राजा को मोती लौट आने की नहीं थी लेकिन, फिर भी बुढ़िया पर तरस खाकर राजा ने उसे मोती दे दी. बुढ़िया दौड़ते हुए उस मोती को लाकर भगवान श्री राम के हंस को खिला दिया.
हंस को खाना खिलाने के बाद बुढ़िया ने भगवान श्रीराम को भी भोजन कराया. भोजन करने के बाद भगवान श्रीराम जाते समय बुढ़िया के आंगन में एक मूर्ति का पेड़ लगा गए. जब पेड़ बड़ा हो गया तो उसमें बहुत सारे मोती होने लगें. लेकिन, बुढ़िया को इस मोती के बारे में कुछ पता नहीं था. जब पेड़ से मोती गिरता था, तो उसकी पड़ोसी उसे उठाकर ले जाती थी.
एक दिन जब बुढ़िया उस पेड़ के नीचे बैठकर सूत काट रही थी. तो, पेड़ से एक मोती गिरा. बुढ़िया ने मोती के गिरते ही उसे उठा लिया और उसे राजा के पास ले गई. बुढ़िया के पास इतने सारे मोती देखकर राजा को बड़ी हैरानी हुई. राजा ने बुढ़िया से पूछा कि तुम्हारे पास इतने मोती कहां से आएं. तब बुढ़िया ने अपने राजा को बताया कि उसके आंगन में एक मोती का पेड़ हैं.
ये सुनकर राजा ने तुरंत उस पेड़ को अपने आंगन में लगवा लिया. लेकिन, भगवान श्री राम की कृपा से राजा के आंगन में लगा हुआ मोती का पेड़ में मोती के बजाय कांटे लगने लगें. एक दिन उसी पेड़ का एक कांटा रानी के पैर में चुभ गया. रानी के पैर में कांटा चुभने के बाद उन्हें बहुत पीड़ा हुई. वो चिल्लाते-चिल्लाते राजा के पास गई. ये देखकर राजा ने उस पेड़ को फिर से बुढ़िया के आंगन में लगवा दिया. प्रभु श्री राम की कृपा से पेड़ में फिर से मोती लगने लगें. अब जब पेड़ से मोती गिरता बुढ़िया उसे उठाकर प्रभु के प्रसाद के रूप में सभी को बांट देती थी.