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बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर

महादेव का यह एक ऐसा मंदिर है जहां सिर्फ एक बेलपत्र से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं।

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो भगवान शिव के कई मंदिर हैं, जिनका ऐतिहासिक महत्व है। बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर लेकिन आज हम महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सिर्फ एक बेलपत्र से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं व कुंवारी कन्याओं को विवाह का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता पार्वती ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या कर भोलेनाथ को पति के रूप में पाया था।

हरिद्वार में बिल्व पर्वत पर स्थित है बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर। बिल्वकेश्वर महादेव बिल्व का अर्थ होता है (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के रूप में फल देने वाला स्थल। इसी पर्वत के नाम पर मंदिर का नाम पड़ा। नीम के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित है,बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर जिसकी अराधना बिल्वकेश्वर या बिल्केश्वर महादेव के रूप में की जाती है। चारों तरफ हरे-भरे जंगलों से घिरे इस प्राचीन मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। सावन महीने में यहां जल चढ़ाने के लिए कांवड़ियों की भारी भीड़ आती है।

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास

स्कंद पुराण के केदारखंड में इस मंदिर का सबसे पहले जिक्र आया है। इसे माता पार्वती की तपोस्थली भी माना जाता है। बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर जैसा की प्रचलित है कि माता पार्वती दो बार भगवान शिव की अर्द्धांगिनी बनीं थीं, यानी 2 बार इनका विवाह हुआ था।

पहला जब भगवान ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था। बिल्वकेश्वर महादेव जिसके बाद माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राजा के घर पार्वती रूप में जन्म लिया था। माता पार्वती ने ऋषि नारद मुनि की सलाह पर बिल्व पर्वत पर आकर कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न कर दोबारा उनकी अर्द्धांगिनी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। बताया जाता है कि माता पार्वती ने बिल्व पर्वत पर 3000 साल तक तपस्या की थी, जिसमें 1 हजार साल वो बिना अन्न व जल पीये रहीं थीं।

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माता की कठोर तपस्या देख महादेव ने उन्हें वृक्ष की शाखा के रूप में दर्शन दिए और माता पार्वती को विवाह का वरदान दिया। बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर के पास एक गौरी कुंड है। इसको लेकर बताया जाता है बिल्वकेश्वर महादेव कि भगवान शिव की उपासना के दौरान माता पार्वती बेलपत्र खाकर अपनी भूख शांत की थी। लेकिन जब उन्हें प्यास लगी तो स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने कमंडल से पानी दिया, जोकि एक कुंड के रूप में आज भी है। बिल्वकेश्वर महादेव माता पार्वती के इस कुंड से पानी पीने के कारण इसका नाम गौरी कुंड पड़ा। कहते हैं कि इस कुंड का जल गंगा की तरह पवित्र है।

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर का महत्व

माना जाता है कि कुंवारी कन्याओं द्वारा इस मंदिर में बेलपत्र चढ़ाने से उनके विवाह की मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के पास बने गौरी कुंड के जल को छू लेने मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि मंदिर में मणिधारक अश्वतर नाम का महानाग रहता है, जो कभी कभी शिवलिंग के पास दिखाई देता है। माना जाता है कि महानाग के दर्शन से हर मनोकामना पूरी होती है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ साल तक स्वर्ग में निवास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला

बिल्व पर्वत पर स्थित यह मंदिर काफी सुंदर तरीके से बनाया गया है। मंदिर में नीम के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है। यानी इसे कहीं से लाकर स्थापित नहीं किया गया बल्कि यह अपने आप यहां प्रकट हुआ। नीम के पेड़ को काटे बिना मंदिर के गर्भगृह को बनाया गया है। कई एकड़ में फैले इस मंदिर में भगवान शंकर पार्वती के अलावा गणेश जी, हनुमानजी व अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के पीछे करीब 50 कदम पर गौरी कुंड है। उसी के ठीक बगल में एक गुफा भी है। बताया जाता है कि इसी गुफा में माता पार्वती विश्राम करती थीं।

मंदिर खुलने का समय

05:00 AM – 09:00 PM

सुबह की आरती का समय

05:30 AM – 06:30 AM

शाम को आरती का समय

06:00 PM – 07:00 PM

महादेव की इस मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त भक्त पंचामृत, धतूरा, दूध, घी, शहर, फल व फूल भगवान को अर्पित करते हैं।

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