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हलाहल विष पान के बाद शिव जी ने इसी स्थान पर की थी साधना।

नीलकंठ महादेव मंदिर उत्तराखंड के हिमालय पर्वतों के तल में पवित्र शहर ऋषिकेश बसा हुआ है और इस पवित्र व पावन शहर में स्थित है नीलकंठ महादेव मंदिर। यह मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ऋषिकेश आने वाले भक्त इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने जरूर जाते है। विशेष अवसरों पर यहाँ पर भारी भीड़ भोलेनाथ के चरणों में माथा टेकने आती है। नीलकंठ महादेव मंदिर पहुंचना आसान नहीं है। यहाँ पहुंचने के लिए पहाड़ और नदियों से होकर जाना पड़ता है।

नीलकंठ महादेव
नीलकंठ महादेव

नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास

नीलकंठ महादेव मंदिर के इतिहास के पीछे के पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसमे बताया जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमे कई वस्तुएँ बाहर आई, जो देवताओं और दानवों में बाँटी गई । फिर समुद्र में से हलाहल विष निकला। यह विष इतना जहरीला था कि कोई भी इसे नहीं चाहता था। यह विष पूरी सृष्टि का विनाश कर सकता था। सम्पूर्ण जगत में विष के कारण हाहाकार मच गया।

तब भोलेनाथ ने इस विष का पान करने का निर्णय लिया। जब वह हलाहल विष को पी रहे थे तो माता पार्वती उनके पीछे खड़ी थी और उन्होंने शिव जी की गर्दन को अपने हाथों से पकड़ लिया। ताकि विष शरीर के अंदर ना जा सके और ना ही गले से बाहर आ सके।

यह विष शंकर जी के गले में ही रह गया जिस कारण उनका गला नीला हो गया। इस वजह से भोलेनाथ ‘नीलकंठ’ के नाम से जाने जाने लगे। परन्तु इस विष में गर्मी बहुत ज्यादा थी। शिव जी शीतलता की तलाश करने लगे और हिमालय की ओर चल दिए। वह मणिकूट पर्वत पर पहुंचे। वहां मधुमती नदी की शीतलता को देखते हुए एक वृक्ष के नीचे बैठ गए।

वह वहाँ समाधी में लीन हो गए। कई वर्ष होने के बाद माता पार्वती को चिंता होने लगी तो वह भी मणिकूट पर्वत पर जाकर शंकर जी के जगाने की प्रतीक्षा करने लगी। देवी-देवताओं की कई बार प्रार्थना करने के बाद भोलेनाथ ने आंख खोली और फिर उन्होंने कैलाश के लिए प्रस्थान किया। इस स्थान से जाने से पहले इसे नीलकंठ महादेव का नाम दिया। जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधि में लीन थे, आज उस स्थान पर नीलकंठ महादेव मंदिर है।

मंदिर का महत्व

नीलकंठ महादेव मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने से सारी कामना पूर्ण होती है। ऐसी मान्यता है कि सावन सोमवार के दिनों में नीलकंठ महादेव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। नीलकंठ महादेव जी के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते है। सभी भक्त भगवान शिव को जल चढ़ाते है। साथ ही मंदिर परिसर में धागा बांध कर अपनी कामना कहते है। फिर जब उनकी मन्नतें पूरी हो जाती है तो वह उस धागे को खोलने आते है।

नीलकंठ महादेव मंदिर:ऋषिकेश, उत्तराखंड, भारत

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मंदिर की वास्तुकला

नीलकंठ महादेव मंदिर का जितना महत्त्व है, मंदिर की नक़्क़ाशी भी उतनी ही आकर्षक है। इस मंदिर के शिखर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को दर्शाया गया है। गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग निर्मित है जिसमे भगवान भोलेनाथ को विष पीते हुए भी दिखाया गया है। इस मंदिर के सामने की पहाड़ी पर एक मंदिर है जो की माता पार्वती का मंदिर है। इस मंदिर में पानी का एक झरना भी है। भक्त दर्शन करने से पहले इस झरने में स्नान करते हैं और फिर भोलेनाथ के दर्शन करते है।

नीलकंठ महादेव मंदिर का समय

नीलकंठ महादेव मंदिर खुलने का समय

05:00 AM – 06:00 PM

मंदिर का प्रसाद

नीलकंठ महादेव मंदिर में फल, फूल, शहद, दूध, जल, नारियल, बेलपत्र, मिठाई, सूखा प्रसाद आदि का भोग लगाया जाता है।

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