नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. नवरात्रि में 9 दिनो तक माँ शक्ति की 9 रूपों में पूजा की जाती है. जिसके बारे में आमतौर पर सभी को पता होता है. लेकिन काफी लोगों के मन में सवाल होता है कि नवरात्रि की पूजा क्यों शुरू की गई थी. इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है. अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते है.
नवरात्रि की शुरूआत के पीछे की पौराणिक कथा
नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. नवरात्रि में 9 दिनो तक माँ शक्ति की 9 रूपों में पूजा की जाती है. जिसके बारे में आमतौर पर सभी को पता होता है. लेकिन काफी लोगों के मन में सवाल होता है कि नवरात्रि की पूजा क्यों शुरू की गई थी. इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है. अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते है.
नवरात्रि के पीछे की पहली पौराणिक कथा कि बात करें, तो ऐसा माना जाता है कि एक बार महिषासुर नाम का एक राक्षस होता था. जोकि ब्रह्मा की पूजा करता था. ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा. जिसके बाद उसने कहा कि मुझे कोई देव, दानव या फिर पृथ्वी पर रहने वाला मनुष्य नहीं मार सकता. ब्रह्माजी उसको यह वरदान दे देते हैं. वरदान मिलने के बाद वह बहुत ही निर्दयी हो जाता है तथा तीनों लोकों में आतंक फैलाने लगता है. जिसके बाद ब्रह्मा , विष्णु तथा महेश ने उसके आतंक से छूटकारा दिलाने के लिए माँ शक्ति के रूप में दूर्गा को जन्म दिया. दूर्गा और महिषासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ. यह युद्ध 9 दिनों तक चलता रहा. अंत में माँ दूर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया. ऐसा माना जाता है कि तभी से इन 9 दिनों को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है. नवरात्रि के पीछे कि दूसरी पौराणिक कथा कि बात करें, तो ऐसा माना जाता है कि रामायण में राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था. उस युद्ध से पहले भगवान राम ने रावण के खिलाफ युद्ध जीतने के लिए रामेश्वरम में 9 दिनों तक माँ शक्ति की अराधना दी थी. जिससे प्रसन्न होकर माँ शक्ति ने राम को विजय श्री का आशिर्वाद दिया. जिसके बाद राम को रावण के खिलाफ विजय प्राप्त हुई. यहीं कारण है कि तब से नवरात्रि की पूजा का शुभारंभ हुआ तथा इन 9 दिनों को नवरात्रि के तौर पर मनाया जाना शुरू हुआ.
पहली कथा- श्रीराम को मिला विजयश्री का आशीर्वाद
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडीदेवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई, वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया।
यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासंभव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग कमलनयन नवकंच लोचन कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राज जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम, मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
दूसरी कथा – एक अक्षर ने बदली रावण के यज्ञ की दिशा
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एक बार रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धरकर हनुमानजी सेवा में जुट गए। नि:स्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा।
इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया।
मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है।
‘भूर्तिहरिणी’ यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया।
हनुमानजी ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
तीसरी कथा- महिषासुर का वध
नवरात्रि पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंसरूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफलस्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देखकर देवता विस्मय की स्थिति में आ गए।
महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है।
तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था।
महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गई थीं। इन 9 दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अंतत: वे महिषासुरमर्दिनी कहलाईं।