
यह एक ऐसा मंदिर है जहां स्थापित माता की मूर्ति का मुख तो पूरब की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली है।
दक्षिण काली मंदिर आमतौर पर किसी मंदिर का नाम वहां स्थापित भगवान या उस स्थान के नाम पर रखा जाता है। लेकिन उत्तराखंड के हरिद्वार में एक ऐसा मंदिर है जहां स्थापित माता की मूर्ति का मुख तो पूरब की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली है। शहर के नील धारा क्षेत्र में चंडी देवी मंदिर मार्ग पर स्थित प्राचीन दक्षिण काली मंदिर सिद्धपीठ है। इसकी महिमा कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर से कम नहीं है। देश में ऐसे सिर्फ 2 ही मंदिर हैं। मंदिर के नाम के साथ यहां की एक और खास बात है।
पूरे देश में नवरात्रि 9 दिन की होती है, लेकिन यहां नवरात्रि पूरे 15 दिन तक मनाई जाती है। मां काली को समर्पित इस मंदिर में शनिवार को विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिससे माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर कर देती हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। इस मंदिर में आए बिना तंत्र साधकों की साधना को पूरा नहीं माना जाता है।
दक्षिण काली मंदिर का इतिहास
बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 351 में हुई। इसका विवरण स्कंध पुराण में भी किया गया है। कलकत्ता के काली व शिवभक्त गुरु कमराज ने मां की मूर्ति को यहां स्थापित किया था। इसलिए इस धाम को कमराज पीठ, अमरा गुरु और दक्षिण काली के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नील धारा क्षेत्र में ही माता कमराज के सपने में आईं और 108 नरमुंडों से मंदिर निर्माण की स्थापना की बात कही। जब कमराज ने पूछा कि इतने सारे नरमुंड वह कहां से लाएंगे, तो माता ने बताया कि इस जगह पर महामशान है।
यहां आने वाले मुर्दों को जीवित कर उनकी इच्छा से 108 नरमुंडों की बलि दो। बताया जाता है कि 108 नरमुंडों के ऊपर ही मंदिर का निर्माण किया गया है। हालांकि, माता की मूर्ति कहां से आई, इसकी कोई जानकारी नहीं है। कहा जाता है कि माता की यह प्रतिमा लाखों सालों से यहां है, जोकि स्वयंभू है। यानी अपने आप प्रकट हुई है। इस मंदिर का सागर मंथन से भी कनेक्शन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सागर मंथन के दौरान जब कालकूट विष निकला तब महादेव ने संसार की रक्षा के लिए पूरा विष अपने कंठ में धारण कर लिया।
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जिसके बाद महादेव ने विष के असर को कम करने के लिए कजरीवन में बह रह गंगा जी में स्नान किया था। बताया जाता है कि भगवान के स्नान के बाद विष के कारण कजरीवन में गंगा जी की धारा नीली हो गई। गंगा की इसी धारा को ही नीलधारा कहा गया। इसी नीलधारा के तट पर विराजमान हैं मां काली।
दक्षिण काली मंदिरका महत्व
माना जाता है कि खुद काल भैरव दक्षिण काली मंदिर की रक्षा करते हैं। कहा जाता है कि मंदिर के आसपास काले व सफेद रंग के नाग-नागिन के जोड़े रहते हैं, जोकि सिर्फ सावन के दिनों में दिखाई देते हैं। शनिवार के दिन इस मंदिर में मां काली की अराधना करने से बड़े से बड़ा विघ्न दूर हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में तंत्र साधक विशेष साधना करते हैं जिससे प्रसन्न होकर मां काली उन्हें अपना आशीर्वाद देती हैं। यहां नील धारा क्षेत्र में गंगा की धारा में स्नान करने पर सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
दक्षिण काली मंदिरकी वास्तुकला
गंगा की धारा मंदिर के दक्षिण की ओर से बहती है, इसलिए मंदिर का नाम दक्षिण काली मंदिर पड़ा। नील पर्वत माला व गंगा की तलहटी में मां काली विराजमान है। मंदिर के आसपास का वातावरण काफी शांत है। इसी वजह से यहां आने वाले भक्तों का तनाव व परेशानी दूर हो जाती है। मंदिर के गर्भगृह में मां काली की मूर्ति विराजमान है। गर्भगृह के कोने में ही एक प्राचीन त्रिशूल लगा है, जोकि 2700 साल पुराना बताया जाता है। मंदिर के एक ओर नील पर्वत है तो दूसरी ओर मां गंगा की नील धारा।
दक्षिण काली मंदिर का समय
मंदिर खुलने का समय
05:00 AM – 10:00 PM
सुबह की आरती का समय
06:00 AM – 07:00 AM
शाम की आरती का समय
07:00 PM – 08:00 PM
मंदिर का प्रसाद
दक्षिण काली मंदिर में शनिवार को माता को पसंदीदा खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त माता को नारियल, गुलाब के फूल, काला जामुन, मीठा पान आदि अर्पित किया जाता है।
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