आप किस को खुश करना चाहते हो ईश्वर को यदि आप अपने माता पिता को ही नहीं खुश कर सकते हो तो ईश्वर भला आपसे क्यों खुश होंगे क्योंकि जितने भी हमारे वेद हैं पुराण हैं गीता है वह भी आपसे यही बताती है कि अपने माता-पिता में ही भगवान को देखो
आप किसकी पूजा करना चाहते हो उस भगवान की जो खुद अपने माता पिता की ही पूजा करता है आप उस भगवान को खुश करना चाहते हो जो अपने माता पिता को ही खुश करना चाहता है माना भगवान का कोई माता-पिता नहीं है लेकिन जल्दी उन्होंने अपने रूप में इस धरती पर आए तब उन्होंने अपने माता-पिता को किस प्रकार सेवा करनी चाहिए किस प्रकार से उनकी बातों को मानना चाहिए यदि हम बात करें तो आप उदाहरण ले लीजिए राम जी का माता पिता जी की आज्ञा के अनुसार ही उन्होंने 14 वर्ष का वनवास काटा चाहते तो मना कर सकते थे लेकिन इस प्रकार उनके मना करने से आने वाली पीढ़ी क्या कहती है
आइए इसी से संबंधित आपको एक हम कथा सुनाते हैं जिसके सुनने मात्र से आपको समझ में आ जाएगा कि क्यों आपको ईश्वर की नहीं अपने माता-पिता की पूजा करनी चाहिए यहां पर ईश्वर की नहीं से हमारा आशय यह है कि सर्वप्रथम आप अपने माता-पिता को खुश करें उसके पश्चात आपके घर में आपके माता-पिता ही आपसे खुश नहीं है तो आप इसको भी खुश करके कुछ भी नहीं कर सकते
पुंडरीक अपने माता-पिता के परम भक्त थे। एक दिन वे अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे तभी भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ वहां आ गए । पुंडरीक पैर दबाने में इतने मग्न थे कि उनका अपने इष्टदेव की ओर ध्यान ही नहीं गया । भगवान ने पुंडरीक को उनके नाम से पुकारा- पुंडरीक, हम तुम्हारे मेहमान बनकर आये हैं । जब पुंडरीक ने आवाज सुन पीछे मुड़कर देखा तो भगवान कृष्ण मंद-मंद मुस्का रहे थे ।
पुंडरीक ने भगवान से कहा कि मेरे माता-पिता अभी सो रहे हैं और मैं उनकी नींद में खलल नहीं डालना चाहता । जब तक मेरे माता-पिता उठते हैं तब तक आप यहां पड़ी ईटों पर खड़े हो जाइये । मैं कुछ ही देर में आपके पास आता हूं । ऐसा कहकर वे फिर से अपने पिता के पैर दबाने में मग्न हो गए । माता-पिता के प्रति पुत्र का ऐसा सेवा-भाव देखकर भगवान वहीं पड़ी ईटों पर खड़े हो गए । किंतु उनके माता-पिता को नींद ही नहीं आ रही थी और उन्होंने फिर से अपनी आंखें खोल दी ।
अपने मां-बाप को दोबारा उठा देखकर पुंडरीक भगवान से बोले कि आपको थोड़ा और इंतजार करना होगा । ऐसा कहकर वे फिर से पैर दबाने में मग्न हो गए । लेकिन इसी बीच पुंडरीक के माता-पिता और स्वयं पुंडरीक स्वर्ग सिधार गए । इस तरह से जिस स्थान पर भगवान ने अपने भक्त को दर्शन दिये वहां बाद में एक मन्दिर की स्थापना की गई, जिसे आज भी विट्ठल मंदिर के नाम से जाना जाता है । ईंट पर खड़े रहने के कारण श्रीकृष्ण भगवान को विट्ठल के नाम से जाना गया और वह जगह पंढरपुर कहलायी।
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