इसे शिव का महीना माना जाता है और पूरे महीने शिव आराधना की जाती है। जिसमें रूद्राभिषेक के बाद बिल्वपत्र और भस्म चढ़ाने समेत कई परंपराए शामिल हैं, लेकिन ऐसा क्यों है? क्यों शिवजी को सावन का महीना पसंद है और इस महीने का नाम सावन कैसे पड़ा ? आइए समझते हैं शिव पूजा की परंपराएं और कथाओं से ?

सावन, दक्षिणायन में आता है। जिसके देवता शिव हैं, इसीलिए इन दिनों उन्हीं की आराधना शुभ फलदायक होती है। सावन के दौरान बारिश का मौसम होता है। पुराणों के मुताबिक शिवजी को चढ़ने वाले फूल-पत्ते बारिश में ही आते हैं इसलिए सावन में शिव पूजा की परंपरा बनी।

स्कंद पुराण में भगवान शिव ने सनत्कुमार को सावन महीने के बारे में बताया कि मुझे श्रावण बहुत प्रिय है। इस महीने की हर तिथि व्रत और हर दिन पर्व होता है, इसलिए इस महीने नियम-संयम से रहते हुए पूजा करने से शक्ति और पुण्य बढ़ते हैं।

भगवान शिव को क्यों प्रिय है सावन का महीना?
कहा जाता हैं सावन भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं. इसके पीछे की मान्यता यह हैं कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जीया. उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोरतप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की. अपनी भार्या से पुन: मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं. यही कारण है कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं.
मान्यता हैं कि सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार
धार्मिक मान्यतानुसार सावन मास में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया जिस कारण उन्हें नीलकंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने से सृष्टि को इस विष से बचाया. इसके बाद सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान हैं.
वर्षा ऋतु के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती हैं. अत: चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य जाति कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास करती हैं.

कामदेव को भस्म किया –
शिव को कामांतक भी कहते हैं। इसके पीछे कथा है। तारकासुर ने ब्रह्माजी से दो वरदान पाए थे। पहला, तीनों लोकों में उसके समान ताकतवर कोई न हो और दूसरा, शिवपुत्र ही उसे मार सके। तारकासुर जानता था कि देवी सती के देहांत के बाद शिव समाधि में जा चुके हैं, जिससे शिवपुत्र होना असंभव था। वरदान पाकर तारकासुर ने तीनों लोकों को जीत लिया। उसके अत्याचार से परेशान होकर देवता ब्रह्माजी के पास गए।

उन्होंने देवताओं को वरदान के बारे में बताते हुए कहा कि केवल शिवपुत्र ही तारकासुर को मार सकता है, लेकिन शिवजी गहरी समाधि में हैं। हिमवान की पुत्री पार्वती शिव से विवाह के लिए तप कर रही हैं, लेकिन वे पार्वती की तरफ देखना भी नहीं चाहते, अगर महादेव पार्वती से विवाह कर पुत्र उत्पन्न करें, तभी इस दैत्य का वध संभव है।

तब इंद्र ने कामदेव से कहा कि वे जाकर शिवजी के मन में देवी पार्वती के प्रति अनुराग जगाएं। कामदेव ने पुष्पबाण ध्यानमग्न शिवजी पर चला दिया। अचानक इस विघ्न से शिवजी बेहद गुस्सा हुए और उन्होंने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया ।

इस पर कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे उसके पति का जीवन वापस लौटा दें। शिव ने शांत होकर कहा, कामदेव की देह नष्ट हुई है, लेकिन उसकी आंतरिक शक्ति नहीं। “काम’ अब देह रहित होकर हर प्राणी के हृदय में रहेगा। वह कृष्णावतार के समय कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेगा। तुम फिर उसकी पत्नी बनोगी। उस समय रति ने मायावती के रूप में जन्म लिया था।

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