इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। हमें अपने स्वार्थ को दूसरों के ऊपर नहीं रखना चाहिए। दूसरों की मदद करने से हमें पुण्य प्राप्त होता है और हमारा जीवन सफल होता है। विश्वामित्र Vishvamitr के पुत्रों ने अपने स्वार्थ के कारण शुनःशेप की मदद करने से इंकार कर दिया। इससे उन्हें बुरा परिणाम भुगतना पड़ा। उन्हें कुत्ते का मांस खाने वाली मुष्टिक आदि जातियों में जन्म लेकर पूरे एक हजार वर्षां तक इस पृथ्वी पर रहना पड़ा।
ऋचीक मुनि के मझले पुत्र ने खुद को राजा अम्बरीष को यज्ञ बलि के पुरुष के रूप में बेच दिया। महायशस्वी राजा अम्बरीष शुनःशेप को साथ लेकर दोपहर के समय पुष्कर तीर्थ में आये और वहाँ विश्राम करने लगे। जब वे विश्राम करने लगे, उस समय महायशस्वी शुनःशेप ज्येष्ठ पुष्कर में आकर ऋषियों के साथ तपस्या करते हुए अपने मामा विश्वामित्र से मिला। वह अत्यन्त आतुर एवं दीन हो रहा था। उसके मुख पर विषाद छा गया था। वह भूख-प्यास और परिश्रम से दीन हो मुनि की गोद में गिर पड़ा।
उसने कहा, न मेरे माता हैं, न पिता, फिर भाई-बन्धु कहाँ से हो सकते हैं? आप ही मेरी रक्षा करें। आप सबके रक्षक तथा अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति कराने वाले हैं। ये राजा अम्बरीष कृतार्थ हो जायँ और मैं भी विकार रहित दीर्घायु होकर सर्वोत्तम तपस्या करके स्वर्गलोक प्राप्त कर लूँ, कोई ऐसी कृपा आप करिये। जैसे पिता अपने पुत्र की रक्षा करता है, उसी प्रकार आप मुझे इस पापमूलक विपत्ति से बचाइये। शुनःशेप की वह बात सुनकर महातपस्वी विश्वामित्र Vishvamitr ने उसे सांत्वना दी और अपने पुत्रों से इस प्रकार के वचन कहे।
प्राचीन मंदिर Ayodhya
शुभ की अभिलाषा रखने वाले पिता जिस पारलौकिक हित के उद्देश्य से पुत्रों को जन्म देते हैं, उसकी पूर्ति का यह समय आ गया है। यह बालक मुनि कुमार मुझसे अपनी रक्षा चाहता है, तुम लोग अपना जीवनमात्र देकर इसका प्रिय करो। तुम सब-के-सब पुण्यात्मा और धर्मपरायण हो, अतः राजा के यज्ञ में पशु बनकर अग्निदेव को तृप्ति प्रदान करो। इससे शुनःशेप सनाथ होगा, राजा का यज्ञ भी बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो जायगा, देवता भी तृप्त होंगे और तुम्हारे द्वारा मेरी आज्ञा का पालन भी हो जायगा।
विश्वामित्र मुनि का वह वचन सुनकर उनके मधुच्छन्द आदि पुत्र अभिमान और अवहेलनापूर्वक वचन कहने लगे। आप अपने बहुत-से पुत्रों को त्यागकर दूसरे के एक पुत्र की रक्षा कैसे करते हैं? जैसे पवित्र भोजन में कुत्ते का मांस पड़ जाय तो वह अग्राह्य हो जाता है, उसी प्रकार जहाँ अपने पुत्रों की रक्षा आवश्यक हो, वहाँ दूसरे के पुत्र की रक्षा के कार्य को हम अकर्त्तव्य के रूप में देखते है।
अपने पुत्रों का ऐसा वचन सुनकर विश्वामित्र (Vishvamitr)क्रोध से लाल हो गए और उन्हें शाप दिया कि मेरी आज्ञा का उल्लङ्घन करके जो यह दारुण एवं रोमाञ्चकारी बात तुमने मुँह से निकाली है, इस अपराध के कारण तुम सब लोग भी वसिष्ठ के पुत्रों की भाँति कुत्ते का मांस खाने वाली मुष्टिक आदि जातियों में जन्म लेकर पूरे एक हजार वर्षां तक इस पृथ्वी पर रहोगे।