विन्ध्येश्वरी आरती के लाभ
विन्ध्येश्वरी आरती माता हिमालय की पुत्री और आदि शक्ति का एक स्वरूप हैं। उनकी आराधना करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। विन्ध्येश्वरी आरती का नियमित रूप से जाप करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- शक्ति और साहस: विन्ध्येश्वरी माता भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करती हैं। इससे भक्त कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं।
- रोगों से मुक्ति: माता के आशीर्वाद से भक्त सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाते हैं।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: जो भक्त सच्चे मन से माता की आराधना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- शत्रुओं का नाश: विन्ध्येश्वरी माता अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके शत्रुओं का नाश करती हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: माता की भक्ति करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- धन और समृद्धि: माता के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में धन और समृद्धि आती है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: माता की कृपा से भक्तों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं।
विन्ध्येश्वरी आरती का जाप कैसे करें
- शांत वातावरण: आरती के समय शांत और एकांत जगह चुनें।
- शुद्ध मन: भक्ति भाव से और शुद्ध मन से आरती का जाप करें।
- दीपक: आरती के समय दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
- माला: आप माला का भी उपयोग कर सकते हैं।
- नियमितता: नियमित रूप से आरती का जाप करने से अधिक लाभ मिलता है।
विन्ध्येश्वरी आरती के बोल
आप विन्ध्येश्वरी आरती के बोल आसानी से इंटरनेट पर या किसी भजन संग्रह में पा सकते हैं।
ध्यान रखें
- यह जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है और किसी भी तरह से चिकित्सा या पेशेवर सलाह नहीं है।
- किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले अपने गुरु या पंडित से सलाह लेना उचित होगा।
क्या आप विन्ध्येश्वरी माता के बारे में और जानना चाहते हैं?
Sun Meri Devi Parvat Vasani:विन्ध्येश्वरी आरती
भक्त इन पंक्तियां को स्तुति श्री हिंगलाज माता और श्री विंध्येश्वरी माता की आरती के रूप मे प्रयोग करते हैं:
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
ले तेरी भेंट चढ़ायो माँ ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
सुवा चोली तेरी अंग विराजे ।
केसर तिलक लगाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
नंगे पग मां अकबर आया ।
सोने का छत्र चडाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया ।
निचे शहर बसाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये ।
कालियुग राज सवाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
धूप दीप नैवैध्य आर्ती ।
मोहन भोग लगाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥
ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया ।
मनवंचित फल पाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥