श्रीराम और माता सीता का विवाह रामायण की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह विवाह हिंदू धर्म में प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
विवाह का प्रसंग
राजा दशरथ के चार पुत्र थे। श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। श्रीराम सबसे बड़े पुत्र थे। राजा दशरथ चाहते थे कि उनके बड़े पुत्र श्रीराम का विवाह हो जाए।
एक दिन, राजा दशरथ ने अपने गुरु वशिष्ठ से सलाह ली। वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें सलाह दी कि वे राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर में भाग लें।
Sita Swayamver सीता स्वयंवर की शर्त
राजा जनक सभी को की शर्त बताते हुए कहते है। आप सभी राजाओं का मेरी पुत्री सीता के स्वयंवर में स्वागत है। आज इस स्वयंवर को जीतने की शर्त यह है कि जो भी महारथी सामने रखें भगवान शिव के पिनाक धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसी से मेरी पुत्री सीता का विवाह संपन्न होगा। अतः आप सभी से अनुरोध है कि एक-एक करके आए और भगवान शिव के इस धनुष को उठाकर और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा कर अपने बलाबल तथा शक्ति का परिचय दें। राजा जनक की यह घोषणा सुनकर सभी राजा एक-एक करके आते हैं और धनुष को उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन भगवान शिव के उस धनुष को उठाना या प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर कोई भी राजा महाराजा उस धनुष को हिला तक नहीं पाया।
लक्ष्मण जी को आया क्रोध
बहुत समय बीत जाने के बाद भी जब कोई राजा उस धनुष को हिला नहीं पाया तो महाराजा जनक को क्रोध आ गया। उन्हें लगने लगा कि कोई भी इस शिव धनुष को उठा नहीं पाएगा और उनकी पुत्री सीता अविवाहित ही रह जाएंगी। यही सोचकर उन्होंने वहां उपस्थित सभी राजाओं की निंदा करने शुरू कर दी कि उनमें से कोई भी लायक पुरुष नहीं है। जो शिव धनुष का उठा सके।
राजा जनक की ऐसी अपमानजनक बातें सुनकर लक्ष्मण जी को क्रोध आ जाता है और वह इसे श्रीराम तथा रघुकुल का अपमान समझते हैं। लक्ष्मण जी राजा जनक को ललकारने लगते हैं कि वह उनके तथा श्रीराम के सभा में होते हुए पूरी सभा को अयोग्य कैसे कह सकते हैं। तब ऋषि विश्वामित्र ने लक्ष्मण जी को शांत कराया और श्री राम को धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए बोला। श्रीराम विनम्र भाव से ऋषि विश्वामित्र जी को प्रणाम करके शिव धनुष की तरफ बढ़ते हैं तो वहां पर उपस्थित राजा उनका उपहास करने लगते हैं क्योंकि कहा जाता है कि उस समय भगवान राम की आयु लगभग 16 से 17 वर्ष की थी। इसलिए वहां उपस्थित सभी राजा उन्हें “लो, अब चिड़िया पहाड़ उठाने को चली है” बोलकर उनका उपहास उड़ा रहे थे।
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श्रीराम ने तोडा शिव धनुष
लेकिन भगवान विष्णु के अवतार श्री राम सहर्ष भाव से शिव धनुष को प्रणाम करते हैं और केवल अपने एक ही हाथ से शिव धनुष को उठा लेते हैं जिसे देखकर वहां उपस्थित सभी राजा हैरान रह जाते हैं। तभी श्री राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उसकी डोरी को खींच देते हैं जिससे वह शिव धनुष टूट जाता है और स्वयंवर की शर्त के अनुसार देवी सीता और श्री राम का विवाह हो जाता है। माता सीता श्री राम को वरमाला पहना देती हैं श्रीराम को अपने पति के रूप में स्वीकार करती है। यह देखकर राजा जनक तथा उनके परिवार जन की खुशी की कोई सीमा नहीं रहती।
देवी सीता तथा श्रीराम का विवाह
तब राजा जनक ऋषि विश्वामित्र को बधाई देते हुए उनका अभिनंदन करते हैं तथा श्री राम और देवी सीता के विवाह के आगे के कार्यक्रम के बारे में पूछते हैं। ऋषि विश्वामित्र राजा जनक को कहते हैं कि हे जनक यह विवाह तो शिव धनुष के अधीन था। तुम धनुष टूटते ही है विवाह तो हो चुका है लेकिन फिर भी आपने कुल के रीति रिवाज के अनुसार ही आगे का कार्यक्रम बनाइए। ऋषि विश्वामित्र के कहने पर जनकपुरी से राजा दशरथ के पास सन्देश भेजा जाता है। तथा उसके बाद दोनों परिवारों के द्वारा विचार करके राजा दशरथ के चारो पुत्रो का विवाह राजा जनक की चारो पुत्रियों से निश्चित कर दिया जाता है। जिसमे श्रीराम के साथ देवी सीता, भरत के साथ मान्ध्वि, लक्ष्मण के साथ उर्मिला, तथा शत्रुघ्न के साथ श्रुतिकीर्ति का शुभ विवाह संपन्न किया जाता है।