Siddha Kunjika Stotram:सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम्: एक शक्तिशाली मंत्र

Siddha Kunjika Stotram:सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् देवी दुर्गा का एक अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमय स्तोत्र है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का मूल मंत्र माना जाता है और इसमें कई प्रभावशाली बीज मंत्र भी शामिल हैं। इस स्तोत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं।

Siddha Kunjika Stotram:स्तोत्र का महत्व

  • सर्व-सिद्धि प्रदान: यह स्तोत्र सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करता है, जैसे कि धन, यश, स्वास्थ्य और मोक्ष।
  • दुःखों का निवारण: यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के दुःखों और कष्टों को दूर करता है।
  • शत्रुओं का नाश: यह स्तोत्र व्यक्ति के शत्रुओं का नाश करता है और उसे सुरक्षा प्रदान करता है।
  • मन की शांति: यह स्तोत्र मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है।

Siddha Kunjika Stotram:स्तोत्र का पाठ कैसे करें

  • शुद्ध मन: स्तोत्र का पाठ करते समय मन को शुद्ध और एकाग्र रखें।
  • शांत वातावरण: एक शांत और शांत स्थान पर बैठकर स्तोत्र का पाठ करें।
  • उच्चारण: स्तोत्र के श्लोकों का उच्चारण साफ और स्पष्ट रूप से करें।
  • भाव: स्तोत्र का पाठ करते समय देवी दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति रखें।

Siddha Kunjika Stotram:स्तोत्र के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक

  • नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि।
  • नमस्ते शुंभहन्त्र्यै च निशुंभासुरघातिनि। जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
  • ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका। क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
Siddha Kunjika Stotram
Siddha Kunjika Stotram

स्तोत्र का लाभ

  • आत्मविश्वास: यह स्तोत्र व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र व्यक्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बनाता है।
  • रोगों से मुक्ति: यह स्तोत्र कई प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: यह स्तोत्र व्यक्ति की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है।

ध्यान दें:

  • सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र एक शक्तिशाली मंत्र है। इसका पाठ करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
  • यदि आपको स्तोत्र का सही उच्चारण नहीं पता है, तो किसी अनुभवी गुरु या पंडित से मार्गदर्शन लें।

सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् (Siddha Kunjika Stotram)

॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच:
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥2॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥4॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥6॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥8॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Siddha Kunjika Stotram

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