Mahaveer Bhagwan Arti:श्री महावीर भगवान की आरती करने से अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं। महावीर भगवान जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं और उनकी आराधना आत्मिक शांति, संयम, और जीवन में सादगी लाने में सहायक मानी जाती है। आरती के निम्नलिखित लाभ हैं:
1. आत्मिक शांति और ध्यान में वृद्धि
- महावीर भगवान की आरती करते समय मन एकाग्र होता है, जिससे ध्यान और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
- यह ध्यान और ध्यानमग्न अवस्था को प्रबल बनाती है।
2. संयम और सहनशीलता का विकास
- महावीर भगवान ने संयम और अहिंसा का संदेश दिया। उनकी आरती करने से ये गुण जीवन में साकार होते हैं।
3. सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- आरती के समय गाए जाने वाले भजनों और मंत्रों से घर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
4. धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव
- महावीर भगवान की आरती से व्यक्ति अपने धर्म और संस्कृति से गहराई से जुड़ाव महसूस करता है।
- यह परंपराओं और अध्यात्म को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम भी है।
5. पापों का नाश और पुण्य का संचय
- आरती के समय उच्चारित मंत्र और भक्ति से व्यक्ति के पिछले कर्मों के पाप कम होते हैं और पुण्य की वृद्धि होती है।
6. अहिंसा और सत्य की प्रेरणा Mahaveer Bhagwan Arti
- महावीर भगवान की आराधना से व्यक्ति को सत्य, अहिंसा, और अपरिग्रह जैसे गुण अपनाने की प्रेरणा मिलती है।
7. Mahaveer Bhagwan Arti रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ
- मानसिक शांति के कारण आरोग्य की प्राप्ति होती है, तनाव कम होता है, और रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है।
8. परिवार में शांति और सुख-समृद्धि
- नियमित रूप से आरती करने से घर के वातावरण में सकारात्मकता और सौहार्द बढ़ता है।
आरती का समय और विधि:
- महावीर भगवान की आरती प्रातः और सायं की जानी चाहिए।
- पूजा स्थल को साफ रखें और दीपक जलाकर भगवान को समर्पित करें।
- आरती के बाद परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
श्री महावीर भगवान की आरती से व्यक्ति का जीवन अध्यात्म, अहिंसा और सत्य की राह पर चलता है, जो जीवन को पूर्णता और समृद्धि प्रदान करता है।
Shri Mahaveer Bhagwan Arti:श्री महावीर भगवान आरती
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
सिद्धार्थ नृप नन्द दुलारे,
त्रिशला के जाये ।
कुण्डलपुर अवतार लिया,
प्रभु सुर नर हर्षाये ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
देव इन्द्र जन्माभिषेक कर,
उर प्रमोद भरिया ।
रुप आपका लख नहिं पाये,
सहस आंख धरिया ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये,
घर में बाल यती ।
राजपाट ऐश्वर्य छोड़ सब,
ममता मोह हती ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
बारह वर्ष छद्मावस्था में,
आतम ध्यान किया।
घाति-कर्म चूर-चूर,
प्रभु केवल ज्ञान लिया ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
पावापुर के बीच सरोवर,
आकर योग कसे ।
हने अघातिया कर्म शत्रु सब,
शिवपुर जाय बसे ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
भूमंडल के चांदनपुर में,
मंदिर मध्य लसे ।
शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी,
दर्शन पाप नसे ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
करुणासागर करुणा कीजे,
आकर शरण गही।
दीन दयाला जगप्रतिपाला,
आनन्द भरण तु ही ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥