Shri Deviji Ki Aarti:श्रीदेवी जी की आरती के लाभ
Shri Deviji Ki Aarti:श्रीदेवी जी की आरती करना एक पवित्र अनुष्ठान है जिसके कई लाभ माने जाते हैं। हिंदू धर्म में, देवी-देवताओं की आरती करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति प्राप्त होती है। Deviji Ki Aarti श्रीदेवी जी, लक्ष्मी जी का ही एक रूप हैं, जो धन, वैभव और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। उनकी आरती करने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
- धन और समृद्धि: श्रीदेवी जी की कृपा से व्यक्ति को धन, वैभव और समृद्धि प्राप्त होती है।
- सुख-शांति: आरती करने से मन शांत होता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
- कष्टों का निवारण: यह माना जाता है कि श्रीदेवी जी की आरती करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: आरती करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति सकारात्मक सोच रखने लगता है।
- रोगों से मुक्ति: श्रीदेवी जी की कृपा से व्यक्ति रोगों से मुक्त होता है।
- आध्यात्मिक विकास: आरती करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है और वह ईश्वर के करीब महसूस करता है।
Shri Deviji Ki Aarti:श्रीदेवी जी की आरती करने का तरीका:
- एक साफ जगह पर बैठकर श्रीदेवी जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- धूप और अगरबत्ती जलाएं।
- फूल चढ़ाएं।
- श्रीदेवी जी की आरती गाएं।
- मन में श्रीदेवी जी का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगें।
ध्यान रखें
- आरती करते समय मन को एकाग्र रखें।
- श्रद्धा और विश्वास के साथ आरती करें।
- नियमित रूप से आरती करने से अधिक लाभ मिलता है।
Shri Deviji Ki Aarti:श्रीदेवी जी की आरती के बोल आप आसानी से इंटरनेट पर या किसी भजन संग्रह में पा सकते हैं।
अस्वीकरण: यह जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है Deviji Ki Aarti और किसी भी तरह से चिकित्सा या पेशेवर सलाह नहीं है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले अपने गुरु या पंडित से सलाह लेना उचित होगा।
क्या आप श्रीदेवी जी की आरती के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं?
Shri Deviji Ki Aarti:श्रीदेवीजी की आरती
जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही सत-चित-सुखमय,
शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर,
पर-शिव सुर-भूपा ॥
जगजननी जय जय..॥
आदि अनादि अनामय,
अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर,
अज आनँदराशी ॥
जगजननी जय जय..॥
अविकारी, अघहारी,
अकल, कलाधारी ।
कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि,
हर सँहारकारी ॥
जगजननी जय जय..॥
तू विधिवधू, रमा,
तू उमा, महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू,
तू जननी, जाया ॥
जगजननी जय जय..॥
राम, कृष्ण तू, सीता,
व्रजरानी राधा ।
तू वांछाकल्पद्रुम,
हारिणि सब बाधा ॥
जगजननी जय जय..॥
दश विद्या, नव दुर्गा,
नानाशस्त्रकरा ।
अष्टमातृका, योगिनि,
नव नव रूप धरा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू परधामनिवासिनि,
महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि,
ताण्डवलासिनि तू ॥
जगजननी जय जय..॥
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या,
तू शोभाऽऽधारा ।
विवसन विकट-सरुपा,
प्रलयमयी धारा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही स्नेह-सुधामयि,
तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही,
तू ही अस्थि-तना ॥
जगजननी जय जय..॥
मूलाधारनिवासिनि,
इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली,
कमला तू वरदे ॥
जगजननी जय जय..॥
शक्ति शक्तिधर तू ही,
नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी,
विमले! वेदत्रयी ॥
जगजननी जय जय..॥
हम अति दीन दुखी माँ!,
विपत-जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी,
पर बालक तेरे ॥
जगजननी जय जय..॥
निज स्वभाववश जननी!,
दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि!
चरण-शरण दीजै ॥
जगजननी जय जय..॥
जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥