Chitragupt Aarti:श्री चित्रगुप्त जी की आरती का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो अपने कर्मों का मूल्यांकन और सुधार करना चाहते हैं। Chitragupt Aarti चित्रगुप्त जी को कर्मों के लेखा-जोखा के देवता माना जाता है, जो यमराज के साथ प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का हिसाब रखते हैं। उनकी आरती से जीवन में ईमानदारी, सत्कर्म, और धार्मिकता का विकास होता है।
Chitragupt Aarti:श्री चित्रगुप्त जी की आरती के लाभ
- कर्मों का शुद्धिकरण: श्री चित्रगुप्त जी की आरती करने से व्यक्ति के नकारात्मक और पाप कर्मों का शुद्धिकरण होता है, जिससे उसे अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
- धार्मिकता और नैतिकता का विकास: श्री चित्रगुप्त जी की आरती करने से व्यक्ति में सत्य, धर्म, और न्याय का विकास होता है। यह उसे अपने कर्मों के प्रति सजग बनाती है और ईमानदारी का मार्ग दिखाती है।
- संतुलित जीवन: श्री चित्रगुप्त जी की आराधना और आरती से व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और संयम बनाए रखने की शिक्षा प्राप्त करता है। यह उसे भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
- पारिवारिक सुख-समृद्धि: श्री चित्रगुप्त जी की कृपा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है, और सभी सदस्य अपने कर्मों में सुधार कर एक अच्छे जीवन का आनंद लेते हैं।
- सद्गुणों का विकास: उनकी आरती से व्यक्ति में सत्यता, दया, और सहनशीलता जैसे गुणों का विकास होता है, जो उसे एक अच्छा इंसान बनने में मदद करते हैं।
- कठिन समय में मार्गदर्शन: श्री चित्रगुप्त जी की आरती करने से व्यक्ति को उसके कर्मों का सही मूल्यांकन करने का मार्गदर्शन मिलता है, जिससे वह भविष्य में सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।
श्री Chitragupt Aarti चित्रगुप्त जी की आरती करते समय मन को एकाग्र और कर्मों के प्रति जागरूक बनाना चाहिए। उनकी आरती से भक्त को अपने कर्मों का सही मूल्यांकन करने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
Shri Chitragupt Aarti:श्री चित्रगुप्त जी की आरती
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥
भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरीखी गरदन,
गले में मणिमाला ॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै ।
कमल दवात हाथ में,
पादुक परा भ्राजे ॥
नृप सौदास अनर्थी,
था अति बलवाला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥
भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पाकर,
सद्गति पावे ॥