Ram Katha मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को सनातन संस्कृति का आधार माना जाता है। भगवान श्री राम, विष्णु जी के अवतार हैं। रामचरित मानस के अनुसार, भगवान श्री राम(Ram Katha) के शासन काल को राम राज्य कहा जाता है। भगवान श्री राम ने अपने जीवन काल में हमेशा एक न्यायप्रिय और प्रजाप्रिय राजा की तरह शासन किया। भगवान श्री राम ने हमेशा “रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई।” के आधार पर अपना कर्तव्य निभाया। इसी कारण अपने पिता राजा दशरथ के कहने पर राज धर्म और वचन के पालन के लिए भगवान श्री राम 14 वर्षों के वनवास पर भी गए। अपने जीवन काल में भगवान श्री राम ने अपने वचन और धर्म को हमेशा अपने स्वार्थ से ऊपर रखा। हम सभी भगवान श्री राम को सियावर, विष्णु अवतार, रघुनंदन, मर्यादा पुरुषोत्तम, भगवान राम और श्री रामचंद्र जी के नाम से जानते हैं। भगवान श्री राम के इन सभी नामों के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी हुई है। हम जानेंगे कि भगवान श्री राम को रामचंद्र जी कहने के पीछे की कथा क्या है।
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Ayodhya:अयोध्या नगरी में हुआ श्री राम का जन्म
अयोध्या नगरी में हुआ श्री राम का जन्म, चैत्र मास की नवमी तिथि, मर्यादा पुरुषोत्तम, जन्में थे प्रभु श्री राम।
अयोध्या नगरी में ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में राजा दशरथ और रानी कौशल्या का विवाह हुआ था। राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से राजा दशरथ को चार पुत्र हुए। सबसे बड़े पुत्र का नाम राम, दूसरे का लक्ष्मण, तीसरे का भरत और चौथे का शत्रुघ्न था।
भगवान राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था। अयोध्या नगरी को भगवान राम की जन्मभूमि माना जाता है।
भगवान राम का जन्म एक ऐतिहासिक घटना है। भगवान राम विष्णु के अवतार थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई महान कार्य किए। उन्होंने रावण का वध करके माता सीता को मुक्त कराया। उन्होंने 14 वर्षों के वनवास में भी अपने धर्म और मर्यादा का पालन किया। भगवान राम एक आदर्श राजा थे। उनके शासन काल को रामराज्य कहा जाता है।
Ram Katha :चंद्रमा को दिए वरदान के कारण कहलाए ‘रामचंद्र’
भगवान विष्णु के धरती पर श्री राम रूप में जन्म लेने के कारण स्वर्ग लोक के देवता बहुत प्रसन्न थे। इसी कारण जब अयोध्या नगरी में दशरथ के पुत्रों के जन्म का उत्सव मनाया गया तब भगवान सूर्य देव अस्त होना भूल गए और अयोध्या नगरी में रात नहीं हुई। रात ने भगवान विष्णु से कहा कि मुझे भी आपके राम रूप के दर्शन करने हैं, तब विष्णु जी ने सूर्यदेव से अस्त होने की प्रार्थना की। जब अयोध्या नगरी में रात हुई तब रात ने भगवान श्री राम (Ram Katha)से कहा कि सूर्य देव के कारण मुझे देरी से आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। भगवान श्री राम ने इस देरी के फलस्वरूप रात को वरदान दिया कि इस जन्म में उनका रंग रात के रंग की तरह ही रहेगा। इसके बाद चंद्रदेव ने भी भगवान श्री राम से कहा कि सूर्यदेव के कारण मुझे भी आपके दर्शन पाने में देरी हो गई। भगवान श्री राम ने चंद्रदेव को भी यह वरदान दिया कि चंद्रदेव का नाम भगवान राम के नाम के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा। इसी कारण आज भी संसार में भगवान श्री राम को रामचंद्र जी के नाम से जाना जाता है।