दुर्गा सप्तशती का तृतीय अध्याय देवी दुर्गा के अद्वितीय पराक्रम और उनके द्वारा असुरों के सेनापति धूम्रलोचन के वध का वर्णन करता है। यह अध्याय दिखाता है कि देवी दुर्गा केवल युद्ध कौशल में निपुण नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं सत्य और धर्म की अधिष्ठात्री हैं। इस अध्याय में असुरों द्वारा पुनः देवताओं पर आक्रमण का प्रयास किया जाता है, लेकिन देवी दुर्गा उन्हें अपनी महाशक्ति से नष्ट कर देती हैं।
दुर्गा सप्तशती तृतीय अध्याय का विस्तृत सार
धूम्रलोचन का अत्याचार (Dhumralochan’s Attack)
महिषासुर के वध के बाद, असुरों के शेष बचे अनुयायी और सेनापति अत्यंत क्रोधित थे। उनमें से एक असुर सेनापति धूम्रलोचन था। उसे असुरराज शुंभ और निशुंभ ने देवी दुर्गा को पराजित करने का आदेश दिया। धूम्रलोचन अपने विशाल सेना के साथ देवी पर आक्रमण करने के लिए निकल पड़ा। उसने देवी को बंदी बनाने का प्रयास किया, लेकिन देवी दुर्गा की शक्ति के आगे वह असफल रहा।
धूम्रलोचन और देवी का सामना (Dhumralochan Faces Devi Durga)
जब धूम्रलोचन ने देवी से युद्ध करना चाहा, तो देवी दुर्गा ने अपनी दृष्टि मात्र से ही उसे भस्म कर दिया। यह देवी के “तृतीय नेत्र” की शक्ति थी, जो अत्यंत क्रोध में खुलकर प्रकट हुई थी। धूम्रलोचन के वध के बाद, उसकी सेना ने देवी पर आक्रमण किया, लेकिन देवी के वाहन सिंह ने असुरों की पूरी सेना को नष्ट कर दिया।
श्लोक और मंत्र (Mantras and Shlokas from Third Chapter)
तृतीय अध्याय में कई महत्वपूर्ण श्लोक और स्तुति प्रस्तुत किए गए हैं, जो देवी दुर्गा की शक्ति और पराक्रम का वर्णन करते हैं।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि। महिषासुरं वदेत्याहं पुनः शत्रून् जहि॥
अर्थ: “हे देवी, हमें रूप, विजय, यश और शत्रुओं का नाश प्रदान करें। महिषासुर के बाद अब शत्रुओं को नष्ट करें।”
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थ: “वह देवी जो सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उन्हें बार-बार प्रणाम।”
धूम्रलोचन का वध (Dhumralochan’s Death by Goddess Durga)
धूम्रलोचन जब देवी के सामने आता है, तो वह अत्यंत घमंड में होता है। वह देवी को बंदी बनाना चाहता है, लेकिन देवी की महाशक्ति के सामने वह असहाय हो जाता है। देवी ने मात्र एक दृष्टि से ही धूम्रलोचन का वध कर दिया। इस घटना ने सभी असुरों में भय फैला दिया और उन्हें अहसास हो गया कि देवी से पार पाना असंभव है।
ततस्तं धूम्रलोचनं बलं चाशेषमर्दयत्। क्रोधसंवर्तया दृष्ट्या सा चासौ साग्निना हता।।
अर्थ: “फिर देवी ने अपनी क्रोधपूर्ण दृष्टि से धूम्रलोचन और उसकी सेना का संहार किया, और वे सब भस्म हो गए।”
असुरों की सेना का नाश (Destruction of Dhumralochan’s Army)
धूम्रलोचन के वध के बाद, उसकी सेना ने देवी पर हमला किया। लेकिन देवी दुर्गा के वाहन सिंह ने उन असुरों को मारकर नष्ट कर दिया। देवी ने अपने सिंह के साथ युद्ध में अद्वितीय कौशल दिखाया और असुरों की पूरी सेना का संहार कर दिया।
देवी सिंह समारूढा शङ्खचक्रगदाधरा। असुराणां क्षयं कर्तुं देवी समुपकल्पिता।।
अर्थ: “देवी दुर्गा अपने सिंह पर सवार होकर, शंख, चक्र, गदा आदि अस्त्रों से सुसज्जित होकर असुरों का विनाश करने के लिए तैयार हो गईं।”
तृतीय अध्याय के प्रमुख बिंदु (Key Takeaways from Third Chapter)
- धूम्रलोचन का अहंकार: धूम्रलोचन ने देवी दुर्गा को कमजोर समझकर उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया, लेकिन उसका अहंकार ही उसके विनाश का कारण बना।
- देवी की दृष्टि की शक्ति: इस अध्याय में देवी दुर्गा की केवल दृष्टि से धूम्रलोचन का वध हुआ, जिससे उनकी असीम शक्ति का प्रमाण मिलता है।
- देवी का पराक्रम: देवी दुर्गा ने धूम्रलोचन और उसकी सेना का नाश करके यह सिद्ध किया कि धर्म की रक्षा के लिए वे किसी भी रूप में प्रकट हो सकती हैं।
तृतीय अध्याय का महत्व (Importance of Third Chapter)
- शक्ति और धर्म की विजय: यह अध्याय बताता है कि जब भी अधर्म और अत्याचार बढ़ता है, देवी दुर्गा अपने शक्तिशाली रूप में प्रकट होकर उसका नाश करती हैं।
- ध्यान और भक्ति का महत्व: इस अध्याय में देवी की स्तुति और प्रार्थना का महत्व बताया गया है। जो भी भक्त सच्चे मन से देवी की आराधना करता है, उसे देवी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
- धूम्रलोचन का प्रतीक: धूम्रलोचन अहंकार और अत्याचार का प्रतीक है। उसका वध यह दर्शाता है कि कोई भी अधर्मी या अहंकारी व्यक्ति देवी की शक्ति से बच नहीं सकता।
दुर्गा सप्तशती तृतीय अध्याय के मुख्य मंत्र (Main Mantras from Third Chapter)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
यह महामंत्र देवी दुर्गा की शक्तियों को आह्वान करता है और भक्तों को भयमुक्त एवं शक्तिशाली बनाता है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थ: “वह देवी जो सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उन्हें बार-बार प्रणाम।”
तृतीय अध्याय से प्राप्त शिक्षा (Lessons from the Third Chapter)
- अहंकार का नाश: धूम्रलोचन का अहंकार उसका विनाश का कारण बना। यह हमें सिखाता है कि अहंकार से बचना चाहिए और सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
- देवी की महिमा: देवी दुर्गा की महाशक्ति को कम करके आंकना असुरों की सबसे बड़ी भूल थी। यह अध्याय हमें देवी के प्रति भक्ति और समर्पण का महत्व सिखाता है।
- शक्ति और भक्ति का संगम: देवी दुर्गा केवल पराक्रम की देवी नहीं हैं, वे करुणा और भक्ति की भी अधिष्ठात्री हैं। उनकी कृपा से सभी संकटों का समाधान हो सकता है।
दुर्गा सप्तशती
- दुर्गा सप्तशती तृतीय अध्याय (Durga Saptashati Third Chapter)
- धूम्रलोचन वध (Dhumralochan Vadh)
- देवी दुर्गा का पराक्रम (Courage of Goddess Durga)
- दुर्गा सप्तशती ऑनलाइन पाठ (Durga Saptashati Online Path)
- देवी दुर्गा की शक्ति (Power of Goddess Durga)
- तृतीय अध्याय मंत्र (Third Chapter Mantras)
- नवरात्रि दुर्गा सप्तशती पाठ (Navratri Durga Saptashati Path)