Mokshada Ekadashi: हिन्दू कलैंडर के मुताबिक, मार्गशीर्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी Mokshada Ekadashi कहा जाता हैं. इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती हैं साथ ही यह धनुर्मास की एकादशी कहलाती हैं, जिस कारण इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता हैं.
Mokshada Ekadashi ka mahatv मोक्षदा एकादशी का महत्व
- मोक्षदा एकादशी को सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत माना जाता है.
- इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- इस व्रत को रखने से व्यक्ति के सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
- ऐसी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत करने से पितरो को मुक्ति मिलती है. इसके अलावा पूर्वजों को उनके कर्मो एवम बंधनों से मुक्ति मिलती हैं. यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु के नाम पर रखा गया है
- व्रत करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. साथ ही घर में खुशहाली का वास होता है.
Mokshada Ekadashi 2023: इस साल कब है मोक्षदा एकादशी? जानें पूजा विधि, मुहूर्त का सही समय
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा mokshada Ekadashi vrat katha
एक समय की बात है, एक धर्मात्मा राजा था जिसका नाम वैखानस था। एक दिन राजा को स्वप्न में अपने पिता के दर्शन हुए। पिता ने बताया कि वे नरक में हैं और कष्ट भोग रहे हैं। राजा ने अपने विद्वानों से इस बारे में पूछा। विद्वानों ने बताया कि राजा के पिता ने अपने जीवनकाल में कई पाप किए थे, जिसके कारण उन्हें नरक में कष्ट भोगना पड़ रहा है। राजा ने अपने पिता को नरक से मुक्त कराने का संकल्प लिया। राजा आश्रम गए. वहाँ कई सिद्ध गुरु थे, सभी अपनी तपस्या में लीन थे. महाराज पर्वत मुनि के पास गए उन्हें प्रणाम किया और समीप बैठ गए. पर्वत मुनि ने मुस्कुराकर आने का कारण पूछा. राजा अत्यंत दुखी थे उनकी आंखों से अश्रु की धार लग गई. तब पर्वत मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टी से सम्पूर्ण सत्य देखा और राजा के सर पर हाथ रखा और यह भी कहा तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के दुःख से इतने दुखी हो. तुम्हारे पिता को उनके कर्मो का फल मिल रहा हैं. उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दी. इसी कारण वे इस पाप के भागी बने और नरक भोग रहे हैं. राजा ने पर्वत मुनि से इस दुविधा के हल पूछा इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी व्रत पालन करने एवम इसका फल अपने पिता को देने का कहा राजा ने मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi )का व्रत रखा और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की। व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को नरक से मुक्ति मिल गई और वे स्वर्गलोक में चले गए। राजा ने भी व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति की।