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Lalita Saptami 2025

Lalita Saptami 2025 Date:ललिता सप्तमी 2025: तिथि, महत्व और संतान सुख व सौभाग्य के लिए संपूर्ण पूजा विधि !

Lalita Saptami 2025: हिंदू धर्म में भाद्रपद मास का विशेष महत्व है, क्योंकि इस माह में जन्माष्टमी, राधा अष्टमी और गणेश उत्सव जैसे कई प्रमुख त्योहार आते हैं। इन्हीं पावन पर्वों में से एक है ललिता सप्तमी, जो श्री ललिता देवी के सम्मान में मनाया जाता है। ललिता देवी, भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की प्रिय सखी थीं। Lalita Saptami 2025 यह व्रत सुख, सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। आइए जानते हैं साल 2025 में ललिता सप्तमी कब है, इसका महत्व क्या है और पूजा की सही विधि क्या है।

ललिता सप्तमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त (Lalita Saptami 2025 Date and Muhurat)

हर साल ललिता सप्तमी, Lalita Saptami 2025 राधाष्टमी से ठीक एक दिन पहले भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है।

ललिता सप्तमी 2025 की तिथि: इस वर्ष ललिता सप्तमी का पावन पर्व 30 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा।

सप्तमी तिथि का आरंभ: 29 अगस्त 2025, शुक्रवार को रात 08 बजकर 21 मिनट पर होगा।

सप्तमी तिथि का समापन: 30 अगस्त 2025, शनिवार को रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा।

• ललिता/संतान सप्तमी की पूजा दोपहर में करने का विधान है।

ललिता सप्तमी का महत्व (Significance of Lalita Saptami)

Lalita Saptami 2025: ललिता सप्तमी का त्योहार श्री ललिता देवी के सम्मान में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण की आठ प्रमुख सखियाँ थीं – श्री राधा, श्री ललिता, श्री विशाखा, श्री चित्रा, श्री इंदुलेखा, श्री चंपकलता, श्री रंग देवी, श्री सुदेवी और श्री तुंगविद्या। इन सभी सखियों में से नंदलाल श्री राधा जी और ललिता जी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। देवी ललिता को राधा जी के प्रति सबसे समर्पित गोपी माना गया है और राधा व कृष्ण के प्रेम और रासलीला में इनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।

मान्यता है कि ललिता सप्तमी का व्रत और पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। Lalita Saptami 2025 इस दिन श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ श्री ललिता जी की पूजा करने से भक्त श्री कृष्ण के प्रेम में पड़ जाते हैं। नवविवाहित जोड़ों को स्वस्थ और सुंदर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है। इसके अलावा, यह व्रत संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए भी रखा जाता है।

ललिता सप्तमी पूजा विधि (Lalita Saptami Puja Vidhi)

Lalita Saptami 2025: ललिता सप्तमी के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर श्री ललिता देवी, राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखें:

1. स्नान और ध्यान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें।

2. देवताओं की स्थापना: इसके बाद, देवी ललिता देवी, राधा-कृष्ण या शालिग्राम की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें। आप गणेश जी, देवी पार्वती, देवी षष्ठी, कार्तिक और शिव की भी पूजा कर सकते हैं।

3. सामग्री अर्पित करें: घी का दीपक जलाएँ और देवताओं को नारियल, चावल, हल्दी, चंदन, गुलाल, फूल और दूध प्रसाद के रूप में अर्पित करें।

4. भोग लगाएं: मिठाई का भोग लगाएं। इस दिन विशेष रूप से मालपुए का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है।

5. धागा बांधें: पूजा क्षेत्र में एक लाल धागा या मौली रखें। प्रार्थना के बाद, इसे अपने दाहिने हाथ में पहनें।

6. अर्घ्य और प्रार्थना: अंत में, जल का अर्घ्य दें और अपनी मनोकामनाएं मांगें।

7. व्रत का पालन: उपवास सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक होता है, और दिन में केवल एक बार भोजन किया जाता है।

8. विशेष परिस्थितियों में: कामकाजी महिलाओं, पढ़ाई करने वालों और चिकित्सीय समस्याओं वाले लोगों को उपवास नहीं करना चाहिए; उन्हें केवल प्रार्थना करनी चाहिए।

9. व्रत खोलना: अगले दिन सुबह प्रार्थना करने के बाद उपवास तोड़ा जाता है। देवताओं को चढ़ाए गए फल को प्रसाद के रूप में वितरित करें।

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ललिता सप्तमी व्रत कथा (Lalita Saptami Vrat Katha)

ललिता सप्तमी से जुड़ी दो प्रमुख कथाएँ हैं:

1. राधा-कृष्ण की प्रिय सखी ललिता जी की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण की आठ प्रमुख सखियाँ थीं, जिनमें श्री राधा और श्री ललिता जी प्रमुख थीं। माना जाता है कि श्री कृष्ण इन दोनों से विशेष प्रेम करते थे। ललिता सप्तमी का व्रत श्री कृष्ण की प्रिय सखी ललिता जी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ श्री Lalita Saptami 2025 ललिता जी की पूजा करने से भक्त श्री कृष्ण के प्रेम में लीन हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि ललिता सप्तमी की पूजा करने से संतान सुख की भी प्राप्ति होती है।

2. संतान सप्तमी (ललिता सप्तमी) की पौराणिक कथा: पौराणिक ग्रंथों में ऋषि लोमेश के मुख से संतान सप्तमी (जिसे ललिता सप्तमी भी कहा जाता है) की कथा सुनने को मिलती है। एक कथा के अनुसार, अयोध्या के राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी और उनकी सहेली रूपमती (जो एक ब्राह्मण की पत्नी थी) दोनों में बहुत गहरा प्रेम था। Lalita Saptami 2025 एक बार वे सरयू नदी के तट पर स्नान करने गईं, जहाँ उन्होंने देखा कि बहुत सी स्त्रियाँ संतान सप्तमी का व्रत कर रही थीं। उन स्त्रियों से कथा सुनकर, चंद्रमुखी और रूपमती ने भी पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का निश्चय किया, लेकिन घर आकर वे दोनों इस बात को भूल गईं।

कुछ समय बाद, दोनों की मृत्यु हो गई और उन्होंने पशु योनि में जन्म लिया। कई जन्मों के बाद, दोनों ने मनुष्य योनि में फिर से जन्म लिया। इस जन्म में चंद्रमुखी का नाम ईश्वरी और रूपमती का नाम भूषणा था। ईश्वरी राजा की पत्नी बनीं और भूषणा ब्राह्मण की पत्नी थीं, और इस जन्म में भी दोनों में बहुत प्रेम था।

Lalita Saptami 2025 इस जन्म में भूषणा को पूर्व जन्म की कथा याद थी, इसलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत विधि-विधान से किया, जिसके प्रताप से उसे आठ पुत्र प्राप्त हुए। लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया, इसलिए उसकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण उसे भूषणा से ईर्ष्या होने लगी। उसने कई प्रकार से भूषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की, लेकिन भूषणा के व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रों को कोई क्षति नहीं हुई।

थक-हारकर ईश्वरी ने अपनी ईर्ष्या और अपने कृत्यों के बारे में भूषणा से कहा और क्षमा भी मांगी। तब भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी के व्रत को करने की सलाह दी। ईश्वरी ने भूषणा की सलाह पर पूरे विधि-विधान के साथ यह व्रत किया और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।

मान्यता है कि जो भी दंपत्ति इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें कुल का मान बढ़ाने वाली संतान की प्राप्ति होती है

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