देवी महागौरी की कथा
कथा है कि भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तप किया था. इससे उनका शरीर काला पड़ गया था. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव इन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करते हैं और इनके शरीर को गंगाजल से धोया जाता है. इससे वे विद्युत के समान कांतिमान हो जाती हैं. वे गौरवर्ण हैं इसलिए उन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है.
Durga mata:महागौरी का स्वरूप
महाअष्टमी के दिन देवी दुर्गा के चार हाथों में से दो हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में होते हैं और दो हाथों में डमरू और त्रिशूल रहता है. महागौरी सफेद या हरा वस्त्र धारण करती हैं. इस दिन देवी दुर्गा के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है. शस्त्रों के प्रदर्शन के कारण इस दिन को वीराष्टमी भी कहा जाता है. अष्टमी पर लाल फूल, लाल चंदन, दिया और धूप जैसी चीजों से मां दुर्गा का पूजन करते हैं. दुर्गा सप्तशती के पाठ का आज विशेष महत्व है.
आराधना मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमस्तस्यै मनो नम:.
कन्या पूजन का फल
अष्टमी के दिन कन्याओं को भोजन करवाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन 10 साल के कम उम्र की कन्याओं के पूजन और उन्हें भोजन कराने से शुभ फल मिलता है. ये कन्याएं मां दुर्गा का प्रतिनिधि मानी जाती हैं. आमतौर पर कन्याभोज में नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है लेकिन 5, 7 और 11 की संख्या भी शुभ मानी जाती है. घर बुलाकर पहले उनके पैर पूजे जाते हैं, फिर उन्हें भोजन कराकर पसंदीदा तोहफे दिए जाते हैं और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है.
Durga mata: माता को अर्पण
मंदिरों में इस दिन महाअष्टमी का हवन होता है. इसमें भक्त बड़ी श्रद्धा से शामिल होते हैं क्योंकि मान्यता है कि इस हवन से पुण्यलाभ होता है. महिलाएं देवी मां को लाल चुनरी, लाल-हरी चूड़ियां और सिंदूर अर्पित करती और अपने सुख-सौभाग्य के लिए प्रार्थना करती हैं. पौराणिक विश्वास के अनुसार देवी के इस स्वरूप की सच्चे मन से पूजा करें तो सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.