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- Create Date November 8, 2023
- Last Updated November 8, 2023
सिद्धान्तरहस्या एक संस्कृत ग्रन्थ है जो 16वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य द्वारा रचित है। यह ग्रन्थ वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों का एक संक्षिप्त और सुव्यवस्थित निरूपण प्रस्तुत करता है।
सिद्धान्तरहस्या में, वल्लभाचार्य ने कृष्ण को परब्रह्म माना है। उन्होंने कहा है कि कृष्ण ही सृष्टि, पालन, और संहार के कर्ता हैं। वे ही सभी जीवों के उद्धारकर्ता हैं।
सिद्धान्तरहस्या में, वल्लभाचार्य ने भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र मार्ग बताया है। उन्होंने कहा है कि भक्ति के द्वारा ही जीव कृष्ण में लीन हो सकता है।
सिद्धान्तरहस्या के प्रमुख विषयों में शामिल हैं:
subhadrageetaamrtam
- कृष्ण की महिमा
- भक्ति का महत्व
- पुष्टिमार्ग की साधना
सिद्धान्तरहस्या की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- यह ग्रन्थ वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों को स्पष्ट और सरल भाषा में प्रस्तुत करता है।
- यह ग्रन्थ वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों को प्रमाणित करने के लिए तर्कों का उपयोग करता है।
- यह ग्रन्थ वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग की साधना का एक सरल और सुगम मार्ग प्रस्तुत करता है।
सिद्धान्तरहस्या एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जो वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के अध्ययन के लिए आवश्यक है। यह ग्रन्थ वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों को समझने और उनका पालन करने में सहायता करता है।
सिद्धान्तरहस्या की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
कृष्णो भगवान् सच्चिदानन्दो नित्यो निरवयवः।
परब्रह्म रूपोऽखिल जगन्नाथोऽखिलात्मभूतः।।
अर्थ:
कृष्ण ही भगवान हैं, सच्चिदानन्द हैं, नित्य हैं, और अवयव रहित हैं।
वे परब्रह्म रूप हैं, समस्त जगत के स्वामी हैं, और समस्त जीवों के आत्मा हैं।
सिद्धान्तरहस्या एक सुंदर और भावपूर्ण ग्रन्थ है जो कृष्ण भक्ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
सिद्धान्तरहस्या की रचना के पीछे वल्लभाचार्य का उद्देश्य यह था कि वे कृष्ण भक्ति के सिद्धान्तों को एक सरल और सुगम भाषा में प्रस्तुत करें। उन्होंने इस ग्रन्थ में कृष्ण भक्ति के महत्व और साधना के मार्ग को स्पष्ट किया है।
सिद्धान्तरहस्या कृष्ण भक्ति के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ ने कृष्ण भक्ति के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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