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  • Create Date October 8, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

श्री अष्टविनायक स्तोत्र एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान गणेश के आठ प्रमुख रूपों की प्रशंसा करता है। यह स्तोत्र 8 श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में एक अलग गणेश की पूजा की जाती है।

स्तोत्र की शुरुआत में, गणेश को "अष्टविनायक" (आठ विघ्नहर्ता) के रूप में संबोधित किया जाता है। फिर, प्रत्येक गणेश के अलग-अलग रूपों का वर्णन किया जाता है, जैसे कि उनके स्थान, उनके नाम, और उनके गुण। स्तोत्र के अंत में, गणेश से प्रार्थना की जाती है कि वे भक्तों को सभी बाधाओं से मुक्त करें और उन्हें सफलता प्रदान करें।

श्री अष्टविनायक स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय मंगलवार या रविवार को माना जाता है। भक्त स्तोत्र को घर पर या मंदिर में बैठे हुए पाठ कर सकते हैं। स्तोत्र को पाठ करते समय, भक्तों को गणेश की छवि या मूर्ति के सामने बैठना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।

श्री अष्टविनायक स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:

  • सभी बाधाओं से मुक्ति
  • सफलता और समृद्धि
  • आध्यात्मिक विकास

श्री अष्टविनायक स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को कई तरह से लाभ पहुंचा सकता है।

श्री अष्टविनायक स्तोत्र का पाठ निम्नलिखित है:

श्लोक 1

स्वस्ति श्रीगणनायकं गजमुखं मोरेश्वरं सिद्धिदम् ॥

श्लोक 2

बल्लाळं मुरुडे विनायकमहं चिन्तामणिं थेवरे ॥

श्लोक 3

लेण्याद्रौ गिरिजात्मजं सुवरदं विघ्नेश्वरं ओझरे ॥

श्लोक 4

शूर्पनखासुभं दैवतं गणेशं एकाक्षं पाताले ॥

श्लोक 5

विघ्नेश्वरं गणेशं गणेशं त्रिशूलं धारिणं ॥

श्लोक 6

घण्टिकापुरे गणेशं विनायकं त्रिनेत्रं ॥

श्लोक 7

ग्रामे रांजणनामके गणपतिं कुर्यात् सदा मङ्गलम् ॥

श्लोक 8

ॐ गं गणपतये नमः॥

अर्थ

श्लोक 1

हे गणपति, आपके गजमुख, मोरेश्वर, और सिद्धिदातार रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 2

हे गणेश, आपके बल्लाळ, चिन्तामणि, और विघ्नेश्वर रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 3

हे गणेश, आपके लेण्याद्रौ, सुवरद, और ओझरे रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 4

हे गणेश, आपके शूर्पनखासुभ, दैवत, और एकाक्ष रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 5

हे गणेश, आपके विघ्नेश्वर, गणेश, और त्रिशूलधारी रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 6

हे गणेश, आपके घण्टिकापुर, त्रिनेत्र, और विनायक रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 7

हे गणेश, आपके ग्रामे रांजणनामके रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 8

हे गणपति, आपको नमस्कार।


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