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- Create Date October 24, 2023
- Last Updated October 24, 2023
शिवाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के एक अलग गुण या विशेषता का वर्णन है।
स्तोत्र की रचना आठवीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यह स्तोत्र हिंदू धर्म में बहुत लोकप्रिय है और अक्सर पूजा और अनुष्ठानों में पढ़ा जाता है।
श्रीशिवाष्टकम् का पाठ
श्लोक 1:
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् । जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आपके गले में मुंडमाला है, आपके शरीर पर सर्प है, आप महाकाल हैं, आप गणेश के स्वामी हैं। आपके जटाजूट से गंगा नदी बहती है, आप विशाल हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।
श्लोक 2:
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम् । अनादिह्यपारं महामोहहारं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आप आनंद से खिलखिलाते हैं, आप महामंडल में मंडित हैं, आप अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। आप अनादि हैं, आप पारमार्थिक हैं, आप मोह का नाश करते हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।
श्लोक 3:
वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदासुप्रकाशम् । गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आप वट वृक्ष के नीचे निवास करते हैं, आपका हास्य बहुत भयानक है, आप महापापों का नाश करते हैं, आप हमेशा प्रकाशमान हैं। आप गिरिराज, गणेश, महेश, और सुरेश हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।
श्लोक 4:
गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् । त्रिपुरासुरसंहारं परात्परं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आप पार्वती के अर्धांग हैं, आप हमेशा कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। आपने त्रिपुरासुर का वध किया है, आप परम हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।
श्लोक 5:
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् । सर्वलोकैकनाथं सुरगुरूं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आप अपने हाथों में कपाल और त्रिशूल धारण करते हैं, आप अपने पैरों से अमृत पान करते हैं, आप सभी लोकों के स्वामी हैं, आप देवताओं के गुरु हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।
श्लोक 6:
शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् । नित्यं भवानीपतिं नमस्कृत्य शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥
अर्थ:
हे भगवान शिव, आपके शरीर का रंग शरद ऋतु के चंद्रमा जैसा है, आप गुणों और आनंद के पात्र हैं, आपके तीन नेत्र हैं, आप धनवान हैं, और आप गणेश की
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