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- Create Date October 12, 2023
- Last Updated October 12, 2023
श्री राम शतपदी एक संस्कृत काव्य है जो भगवान राम की महिमा का वर्णन करता है। यह काव्य 17वीं शताब्दी के संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है। काव्य में, तुलसीदास भगवान राम के गुणों का वर्णन करते हैं और उनके भक्तों को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
श्री राम शतपदी में कुल 100 छंद हैं, जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं, जैसे कि भगवान राम का जन्म, उनका बचपन, उनका विवाह, उनका वनवास, उनका रावण पर विजय और उनका राज्याभिषेक। काव्य में भगवान राम के गुणों का भी वर्णन किया गया है, जैसे कि उनकी सुंदरता, उनकी बुद्धि, उनकी शक्ति और उनकी करुणा।
श्री राम शतपदी एक अत्यधिक लोकप्रिय काव्य है और इसे हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ काव्यों में से एक माना जाता है। काव्य का भक्तों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उन्हें भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
श्री राम शतपदी के कुछ प्रमुख छंद निम्नलिखित हैं:
- छंद 1:
रामचरन पंकज सरीस, नहिं रज अरु नहिं राग। मोर मन मृग तजिहिं नहिं, द्रवहि नहिं अनुराग।।
इस छंद में तुलसीदास भगवान राम के चरणों की महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान राम के चरण कमल की तरह पवित्र हैं और उनमें कोई धूल या मल नहीं है। तुलसीदास कहते हैं कि उनका मन हरिण की तरह है, जो भगवान राम के चरणों को छोड़कर और किसी चीज से संतुष्ट नहीं होता है।
- छंद 2:
रामचरन रस पीतहुं, मगन मन मोद न समाए। तुलसीदास हृदय नित, रामगुण गुन गाए।।
इस छंद में तुलसीदास भगवान राम के नाम का जाप करने के आनंद का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान राम के नाम का जाप करने से उनका मन इतना प्रसन्न हो जाता है कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाता है। तुलसीदास कहते हैं कि उनका हृदय हमेशा भगवान राम के गुणों का गाता रहता है।
- छंद 3:
रामजी भजहु सदा, मन रमावहु तैंया। जाके राम भक्ति नहिं, सोक सोक समैंया।।
इस छंद में तुलसीदास भगवान राम की भक्ति के महत्व का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा भगवान राम का भजन करना चाहिए और अपने मन को उन्हीं में लगाना चाहिए। तुलसीदास कहते हैं कि जिसके पास भगवान राम की भक्ति नहीं है, उसका जीवन दुखों में बीतता है।
श्री राम शतपदी एक अत्यधिक प्रेरणादायक काव्य है जो भक्तों को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। काव्य भगवान राम के गुणों का वर्णन करता है और भक्तों को उनकी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
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