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  • Create Date October 16, 2023
  • Last Updated October 16, 2023

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ एक वैष्णव ग्रन्थ है जिसकी रचना श्री चैतन्य महाप्रभु ने की थी। यह ग्रन्थ भगवान जगन्नाथ की महिमा का वर्णन करता है।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ में, श्री चैतन्य महाप्रभु ने भगवान जगन्नाथ को निम्नलिखित रूपों में वर्णित किया है:

  • जगत् के स्वामी: भगवान जगन्नाथ समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं।
  • परमार्थ का स्वरूप: भगवान जगन्नाथ परमार्थ का स्वरूप हैं।
  • मोक्ष का मार्ग: भगवान जगन्नाथ मोक्ष का मार्ग हैं।
  • भक्तों के रक्षक: भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के रक्षक हैं।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ एक शक्तिशाली ग्रन्थ है जो भक्तों को भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह ग्रन्थ भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने और मोक्ष प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भगवान जगन्नाथ समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं।
  • परमार्थ का स्वरूप भगवान जगन्नाथ हैं।
  • मोक्ष का मार्ग भगवान जगन्नाथ हैं।
  • भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के रक्षक हैं।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जो भगवान जगन्नाथ के बारे में जानने के लिए एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु है।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ का पाठ हिंदी में इस प्रकार है:

जगन्नाथ के गुण

जगन्नाथ हैं जगत् के स्वामी, परमार्थ के स्वरूप हैं। मोक्ष का मार्ग हैं जगन्नाथ, भक्तों के रक्षक हैं।

जगन्नाथ हैं सर्वव्यापी, उनके गुण अनंत हैं। वे ही सब कुछ हैं, वे ही सर्वत्र हैं।

जगन्नाथ हैं परमात्मा, वे ही जीवात्मा हैं। वे ही ब्रह्म हैं, वे ही परम सत्य हैं।

जगन्नाथ हैं प्रेम के सागर, वे ही करुणा के धाम हैं। वे ही ज्ञान के प्रकाश हैं, वे ही भक्ति के मार्ग हैं।

जो भक्त भगवान जगन्नाथ की शरण में जाते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। वे मोक्ष प्राप्त करते हैं, और भगवान जगन्नाथ के दर्शन प्राप्त करते हैं।

श्री जगन्नाथ गीतमृ्तं ३ का पाठ संस्कृत में इस प्रकार है:

जगन्नाथस्य गुणाः

जगन्नाथो जगतो नाथो,
परमार्थस्य स्वरूपः।
मोक्षमार्गो जगन्नाथो,
भक्तानां रक्षकः।

जगन्नाथो सर्वव्यापी,
तेषां गुणाः अनन्ताः।
ते एव सर्वं,
ते एव सर्वत्र।

जगन्नाथो परमात्मा,
ते एव जीवात्मा।
ते एव ब्रह्म,
ते एव परम सत्यम्।

जगन्नाथो प्रेमसागरः,
ते एव करुणाधामः।
ते एव ज्ञानप्रकाशः,
ते एव भक्तिमार्गः।

यः भक्तो जगन्नाथस्य,
शरणं गच्छति।
तस्य सर्वदुःखानि,
दूरं गच्छन्ति।

स मोक्षं प्राप्नोति,
जगन्नाथदर्शनं च।

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