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- Create Date November 23, 2023
- Last Updated November 23, 2023
श्रीकृष्णाष्टकम् भगवान कृष्ण की आठ श्लोकों वाली एक स्तुति है। यह स्तुति भगवान कृष्ण के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन करती है।
श्रीकृष्णाष्टकम् का प्रथम श्लोक भगवान कृष्ण के परम पिता, भगवान विष्णु की स्तुति करता है। दूसरे श्लोक में, भगवान कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया गया है। तीसरे श्लोक में, भगवान कृष्ण के यौवन रूप का वर्णन किया गया है। चौथे श्लोक में, भगवान कृष्ण के मधुर स्वभाव का वर्णन किया गया है। पांचवें श्लोक में, भगवान कृष्ण के पराक्रम का वर्णन किया गया है। छठे श्लोक में, भगवान कृष्ण के प्रेम का वर्णन किया गया है। सातवें श्लोक में, भगवान कृष्ण के भक्तों के कल्याण का वर्णन किया गया है। आठवें श्लोक में, भगवान कृष्ण से प्रार्थना की गई है कि वे भक्तों को अपने दर्शन दें।
Srikrishnaashtakam
श्रीकृष्णाष्टकम् का सार निम्नलिखित है:
- भगवान कृष्ण सर्वोच्च परमात्मा हैं।
- भगवान कृष्ण बाल रूप में भी अत्यंत सुंदर और आकर्षक हैं।
- भगवान कृष्ण यौवन रूप में भी अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी हैं।
- भगवान कृष्ण का स्वभाव अत्यंत मधुर और करुण है।
- भगवान कृष्ण अपने भक्तों के लिए सदैव रक्षा और सहायता के लिए तत्पर रहते हैं।
- भगवान कृष्ण का प्रेम अत्यंत पवित्र और अनंत है।
श्रीकृष्णाष्टकम् का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
- भक्ति में वृद्धि होती है।
- मन शांत और प्रसन्न होता है।
- पापों से मुक्ति मिलती है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्णाष्टकम् की कुछ पंक्तियों का अर्थ निम्नलिखित है:
- "वन्दे वासुदेवं कृष्णं चन्द्रार्धवर्णं सुन्दरम्।" (मैं वासुदेव और कृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो चंद्रमा के आधे भाग के समान सुंदर हैं।)
- "वन्दे बालकृष्णं गोपीवल्लभं मधुरं।" (मैं बालकृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो गोपियों के प्रिय और अत्यंत मधुर हैं।)
- "वन्दे यौवनकृष्णं वल्गुलितशरीरम।" (मैं यौवनकृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जिनका शरीर अत्यंत सुंदर और आकर्षक है।)
- "वन्दे मधुरवक्त्रम कृष्णं भक्तवत्सलम।" (मैं मधुर वक्तृत्व वाले कृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो अपने भक्तों के लिए सदैव प्रिय हैं।)
- "वन्दे पराक्रमी कृष्णं दुराचारनाशनम्।" (मैं पराक्रमी कृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो दुष्टों का नाश करने वाले हैं।)
- "वन्दे प्रेममयं कृष्णं भक्तानां कल्याणम्।" (मैं प्रेममय कृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो अपने भक्तों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।)
- "वन्दे कृष्णं देवं सर्वलोकैकनाथम्।" (मैं कृष्ण देव को नमस्कार करता हूँ, जो समस्त लोकों के एकमात्र नाथ हैं।)
श्रीकृष्णाष्टकम् का पाठ करने के लिए किसी विशेष विधि की आवश्यकता नहीं है। आप किसी भी समय और किसी भी स्थान पर इसका पाठ कर सकते हैं। आप इसे ध्यान में बैठकर भी पढ़ सकते हैं या मन में भी इसका जाप कर सकते हैं।
श्रीकृष्णाष्टकम् एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है। इसका पाठ करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्णाष्टकम् की तीसरी पंक्ति का अनुवाद निम्नलिखित है:
मैं यौवनकृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जिनका शरीर अत्यंत सुंदर और आकर्षक है।
इस पंक्ति में, कृष्ण के यौवन रूप की प्रशंसा
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