शिवष्टकम श्लोक 4
लम्बत्सपिङ्गलजटामुकुटोत्कटाय। दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय। व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय। त्रैलोक्यनाथनमिताय नमः शिवाय॥
अर्थ
जिनके लंबे और लाल जटाओं से मुकुट बना है, जिनके दांत नुकीले और भयानक हैं, जो व्याघ्रचर्म का वस्त्र धारण करते हैं और मनोहर हैं, उन त्रैलोक्यनाथ शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
Shivashtakam 4
व्याख्या
इस श्लोक में शिव भगवान के भैरव रूप की स्तुति की गई है। भैरव भगवान शिव के ही एक रूप हैं, जो अत्यंत भयंकर और शक्तिशाली हैं। वे सभी दुष्टों का नाश करने वाले हैं।
इस श्लोक में शिव भगवान के लंबे और लाल जटाओं से बने मुकुट का वर्णन किया गया है। यह मुकुट उनकी अद्भुत शक्ति और महिमा का प्रतीक है।
इस श्लोक में शिव भगवान के नुकीले और भयानक दांतों का वर्णन किया गया है। ये दांत उनके क्रोध और उग्रता का प्रतीक हैं।
इस श्लोक में शिव भगवान के व्याघ्रचर्म के वस्त्र का वर्णन किया गया है। यह वस्त्र उनकी शक्ति और साहस का प्रतीक है।
इस श्लोक में शिव भगवान के मनोहर रूप का वर्णन किया गया है। यह रूप उनकी करुणा और दया का प्रतीक है।
इस श्लोक में शिव भगवान को त्रैलोक्यनाथ कहा गया है। इसका अर्थ है कि वे तीनों लोकों के स्वामी हैं।