• Version
  • Download 863
  • File Size 0.00 KB
  • File Count 1
  • Create Date October 6, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम एक संस्कृत स्तोत्र है जो हनुमान जी की वीरता की प्रशंसा करता है। यह स्तोत्र 20 श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक हनुमान जी के एक विशेष पराक्रम का वर्णन करता है।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम का पाठ करने से भक्तों को हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। यह भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है और उन्हें सुख और समृद्धि प्रदान करता है।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम का पाठ करने की विधि इस प्रकार है:

  1. किसी भी शुभ दिन और शुभ समय पर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें।
  2. एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखें।
  3. हनुमान जी को धूप, दीप, फूल आदि अर्पित करें।
  4. हनुमान चालीसा या अन्य हनुमान जी के भजनों का पाठ करें।
  5. अब, आप वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम का पाठ करें।
  6. पाठ को 108 बार, 1008 बार या अधिक बार किया जा सकता है।
  7. पाठ के बाद, हनुमान जी की आरती करें।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम का पाठ करने के लिए कुछ टिप्स इस प्रकार हैं:

  • साफ और शांत स्थान पर बैठें।
  • ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें।
  • प्रत्येक श्लोक का स्पष्ट और ध्यान से उच्चारण करें।
  • हनुमान जी के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा रखें।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • भक्तों को हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।
  • भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • भक्तों को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम एक बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

वीरविंशतिकाख्यान श्रीहनुमत्सोत्रम के 20 श्लोक इस प्रकार हैं:

  1. जय जय जय हनुमंत, वीररत्न।
  2. अंजनीसुत, वायुपुत्र, महावीर महाबल।
  3. रामचंद्रो निज भक्त, हितकारी सदा।
  4. लंकापुरी दहन, किया तूने।
  5. लक्ष्मण को मृत, जानकर रोया तू।
  6. पहाड़ उठाकर, ले गया तू।
  7. चौंक पड़ा रावण, देखकर तू।
  8. सीता को पाकर, लौट आया तू।
  9. रावण से युद्ध, कर तूने।
  10. लाक्षागृह में, आग लगाई तू।
  11. मंदिर में, विराजमान तू।
  12. भक्तों की, रक्षा करते तू।
  13. दुष्टों का, नाश करते तू।
  14. सभी कष्टों, को दूर करते तू।
  15. सभी मनोकामनाएं, पूर्ण करते तू।
  16. भक्तों को, मोक्ष देते तू।
  17. जय जय जय हनुमंत, वीररत्न।
  18. सभी भक्तों, की रक्षा करो।
  19. सभी दुष्टों, का नाश करो।
  20. सभी मनोकामनाएं, पूर्ण करो।

Download

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *