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  • Create Date November 6, 2023
  • Last Updated November 6, 2023

Vishwanathashtakam

विश्वनाथाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति करता है। यह स्तोत्र वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में शिव की पूजा के दौरान पढ़ा जाता है। स्तोत्र की रचना महर्षि व्यास ने की थी।

स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है। प्रत्येक श्लोक में, भक्त शिव की एक अलग विशेषता या गुण की स्तुति करते हैं।

स्तोत्र की शुरुआत में, भक्त शिव को "विश्वनाथ" या "विश्व का स्वामी" कहते हैं। वे शिव को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ बताते हैं।

इसके बाद, भक्त शिव की विभिन्न विशेषताओं की स्तुति करते हैं। वे शिव को गंगा नदी के द्वारा प्रवाहित होने वाली जटाओं के साथ, पार्वती के साथ, और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हुए देखते हैं।

स्तोत्र का अंत शिव की स्तुति के साथ होता है। भक्त शिव की महिमा गाते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।

विश्वनाथाष्टकम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र अक्सर भय, मृत्यु और अन्य कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए पढ़ा जाता है।

स्तोत्र का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:

Vishwanathashtakam

विश्वनाथाष्टकम्

प्रथम श्लोक

गंगातरंगरमणीयजटाकलापं गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् । नारायणप्रियमनंगमदापहारं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

अर्थ:

हे विश्वनाथ, आपके जटाओं में गंगा नदी की धारा बहती है। आपके बाएं हाथ में गौरी विराजमान हैं। आप नारायण के प्रिय हैं। आप संसार के सभी मोह को हर लेते हैं। मैं आपको वाराणसी के राजा के रूप में भजता हूं।

द्वितीय श्लोक

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् । वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

अर्थ:

आप वाणी से परे हैं, और आपके कई गुण हैं। आप वागीश्वर, विष्णु और देवताओं के द्वारा पूजे जाते हैं। आपके बाएं हाथ में गंगा नदी बहती है। मैं आपको वाराणसी के राजा के रूप में भजता हूं।

तृतीय श्लोक

भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् । पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

अर्थ:

आप भूतों के स्वामी हैं, और आपके शरीर पर सांपों के आभूषण हैं। आप व्याघ्र चर्म धारण करते हैं, और आपके तीन नेत्र हैं। आप पाश, अंकुश, अभय और शूल धारण करते हैं। मैं आपको वाराणसी के राजा के रूप में भजता हूं।

चतुर्थ श्लोक

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् । नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

अर्थ:

आपके सिर पर चंद्रमा की शोभा है। आपके नेत्र भाले की तरह हैं, और आपके पांच बाण अग्नि की तरह हैं। आपके कानों में नागों की माला है। मैं आपको वाराणसी के राजा के रूप में भजता हूं।

पंचम श्लोक

पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् । दावानलं मरणशोकजराटवीनां वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

अर्थ:

आप पाँच मुख वाले हैं, और आप पापियों और राक्षसों का नाश करते हैं। आप अग्नि के समान भयंकर हैं, और आप दुख और शोक को दूर करते हैं।

विश्वेश्वरादिस्तुतिः Vishweshvaradistutih


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