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- Create Date October 11, 2023
- Last Updated July 29, 2024
लघु राघवेंद्रस्तोत्र
श्रीमद् राघवेंद्राय सत्यधर्मरताय च । भजतां कल्पवृक्षाय नमतां कामधेनवे ॥ १॥
अर्थ:
हे श्री राघवेंद्र, आप सत्य और धर्म के प्रति दृढ़ हैं। आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं, और आप कामधेनु हैं। हम आपके चरणों में नमस्कार करते हैं।
श्री दुर्वादिध्वांतरवये वैष्णवींदीवरींदवे । नमो श्री राघवेंद्रगुरवे नमोऽत्यंतदयाळुवे ॥ २॥
अर्थ:
हे श्री राघवेंद्र, आप दुर्वादि (दुर्गम) के बादवर्ती हैं, और आप वैष्णवों के मस्तक पर मुकुट हैं। हम आपको प्रणाम करते हैं, हे अत्यंत दयालु गुरुदेव।
श्रीसुधींद्राब्धिसंभूतान् राघवेंद्रकलानिधीन् । सेवे सज्ञानसौख्यार्थं संतापत्रय शांतये ॥ ३॥
अर्थ:
हम श्री सुधींद्र के सागर से उत्पन्न राघवेंद्र के कलाओं के भंडार की सेवा करते हैं, ताकि ज्ञानियों के सुख के लिए और संतों की शांत के लिए।
अघं द्रावयते यस्माद्वेंकारो वाञ्छितप्रदः । राघवेंद्रयतिस्तस्माल्लोके ख्यातो भविष्यति ॥ ४॥
अर्थ:
जो व्यक्ति वेंकटाचल पर्वत पर स्थित श्री राघवेंद्र की पूजा करता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं, और वह सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है। इसलिए, वह संसार में प्रसिद्ध होगा।
फलश्रुति:
जो कोई इस लघु राघवेंद्रस्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है, और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
व्याख्या:
इस स्तोत्र में, भक्त श्री राघवेंद्र की स्तुति करते हैं। वे उन्हें सत्य और धर्म का पालन करने वाला, भक्तों के लिए कल्पवृक्ष और कामधेनु, दुर्वादि के बादवर्ती और वैष्णवों के मस्तक पर मुकुट, श्री सुधींद्र के सागर से उत्पन्न राघवेंद्र के कलाओं के भंडार, पापों को धोने वाला और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला बताते हैं। वे इस स्तोत्र का पाठ करने से मिलने वाले लाभों का भी उल्लेख करते हैं।
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